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पृष्ठ
नहीं
वर्णन
३
७४
११५
११६
छिहत्तर
कुंदकुंद-भारती
गाथा पृष्ठ द्वितीय स्कंध औदयिक भावद्रव्य कर्मकृत है ५८-६० १७
गाथा आत्मा निजभावका कर्ता है, परका
मोक्षमार्गके कथनकी प्रतिज्ञा
१०५ ६१-६२ १८ | सम्यग्दर्शनादिकी एकता ही मोक्षका मार्ग है १०६ जब आत्मा कर्ता नहीं है तब उसका
सम्यग्दर्शनादिका स्वरूप
१०७ फल कैसे भोगता है
६३-६८ १८-१९ । नौ पदार्थोके नाम संसार परिभ्रमणका कारण ६९ १९ जीवोंके भेद
१०८ मोक्षप्राप्तिका उपाय
७० २० | स्थावरकायका वर्णन जीवके अनेक भेद
७१-७२ २० स्थावर और त्रसका विभाग मुक्त जीवोंके ऊर्ध्वगमन स्वभावका
पृथिवीकायिक आदि स्थावर एकेंद्रिय
जीव हैं पुद्गल द्रव्यके चार भेद
| एकेंद्रियोंमें जीवके अस्तित्वका स्कंध आदिके लक्षण
वर्णन स्कंघके छह भेदोंका वर्णन
द्वींद्रिय जीवोंका वर्णन परमाणुका लक्षण
त्रींद्रिय जीवोंका वर्णन परमाणुकी विशेषता
२२ चतुरिंद्रिय जीवोंका वर्णन शब्दका कारण
पंचेंद्रिय जीवोंका वर्णन
११७-११८ परमाणुकी अन्य विशेषताओं का वर्णन
जीवोंका अन्य पर्यायोंमें गमन
११९ परमाणुमें रस गंध आदिका वर्णन
२३ | संसारी, मुक्त, भव्य तथा अभव्योंका पुद्गल द्रव्यका विस्तार
८२ वर्णन
१२० धर्मास्तिकायका वर्णन ८३-८५ २३ | इंद्रियादिक जीव नहीं है
१२१ अधर्मास्तिकायका वर्णन ८६ | जीवकी विशेषता
१२२-१२३ धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकायोंकी
द्रव्योंमें चेतन अचेतनका वर्णन
१२४ विशेषताका वर्णन ८७-८९ २४ अजीवका लक्षण
१२५ आकाशास्तिकायका लक्षण
२४ शरीररूप पदगल और जीवमें लोक और अलोकका विभाग ९१ २४ पृथक्त्वका वर्णन
१२६-१२७ आकाशको ही गति और स्थितिका
जीवके संसारभ्रमणका कारण १२८-१३० कारण माननेमें दोष
९२-९५ २५ जीवके शुभ अशुभ भावोंका वर्णन १३१ धर्म, अधर्म और आकाशकी एकरूपता
पुण्य और पापका लक्षण तथा अनेकरूपता ९६ २५ | कर्म मूर्तिक है
१३३ द्रव्योंमें मूर्त और अमूर्त द्रव्यका विभाग
पूर्व मूर्त कर्मोंके साथ नवीन जीव और पुद्गल द्रव्यही क्रियावंत हैं
मूर्त कोका बंध होता है
३४ मूर्तिक और अमूर्तिकका लक्षण
पुण्यकर्मका आस्रव किसके होता है १३५ काल द्रव्यका कथन १००-१०१ प्रशस्त रागका लक्षण
१३६ जीवादि द्रव्य अस्तिकाय हैं काल नहीं १०२ २७ | अनुकंपाका लक्षण पंचास्तिकाय संग्रहके जाननेका फल १०३-१०४ २७ | कालुष्यका लक्षण
१३८ पापास्रवके कारण
१३९-१४०
२३
३१ ३१
३१ ३१
१३२
३६
१३७
३४ ३४