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________________ भाक्तसंग्रह ३७३ अहिंसा आदि पाँच महाव्रत कहे गये हैं, पाँच समितियाँ, पाँच इंद्रियोंका निग्रह, छह आवश्यक, भूमिशयन, अस्नान, अचेलता -- वस्त्ररहितपना, लोच करना, स्थितिभक्ति -- खड़े-खड़े आहार लेना, अदंतधावन और एकभक्त -- एक बार भोजन करना ये मुनियोंके मूलगुण कहे गये हैं। दश धर्म, तीन गुप्तियाँ, समस्त प्रकारके शील और सब प्रकारके परिषहसे उत्तरगुण कहे गये हैं, इनके सिवाय और भी उत्तरगुण कहे गये हैं। यदि उनका पालन करते हुए मैंने उनकी हानि की तो -- ।।८-९।। जइ राएण दोसेण, मोहेणाणादरेण वा। वंदित्ता सव्वसिद्धाणं, संजदा वा मुमुक्खुणा।।९।। संजदेण मए सम्मं, सव्वसंजममाविणा। सव्वसंजमसिद्धीओ, लब्भदे मुत्तिजं सुखं ।।१०।। यदि रागसे, द्वेषसे, मोहसे अथवा अनादरसे उक्त मूलगुणों अथवा उत्तरगुणोंसे तो हानि पहुँची हो तो सम्यक् रीतिसे संपूर्ण संयमका पालन करनेवाले मुझ संयमी मुमुक्षुको, सब सिद्धोंका नमस्कार कर उस हानिका परित्याग करना चाहिए, क्योंकि सकल संयमसे मुक्तिसंबंधी सुख प्राप्त होता है।। ___ अंचलिका इच्छामि भंते! चारित्तभत्ति काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेलं, सम्मणाणुजोयस्स, सम्मत्ता हिट्ठियस्स, सव्वपहाणस्स, णिव्वाणमग्गस्स, कम्मणिज्जरफलस्स, खमाहारस्स, पंचमहब्वयसंपुण्णस्स, त्रिगुत्तिगुत्तस्स, पंचसमिदिजुत्तस्स, णाणज्झाणसाहणस्स, समयाइपवेसयस्स, सम्मचारित्तस्स णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं।। हे भगवन्! मैंने जो चारित्रभक्तिसंबंधी कायोत्सर्ग किया है उसकी आलोचना करना चाहता हूँ। जो सम्यग्ज्ञानरूप उद्योत -- प्रकाशसे सहित है, सम्यग्दर्शनसे अधिष्ठित -- युक्त है, सबमें प्रधान है, मोक्षका मार्ग है, कर्मनिर्जरा ही जिसका फल है, क्षमा ही जिसका आधार है, जो पाँच महाव्रतोंसे परिपूर्ण है, तीन गुप्तियोंसे गुप्त -- सुरक्षित है, पाँच समितियोंसे सहित है, ज्ञान और ध्यानका साधन है तथा आगम आदिमें प्रवेश करानेवाला है ऐसे सम्यक्चारित्रकी मैं नित्य ही अर्चा करता हूँ, पूजा करता हूँ, वंदना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ। इसके फलस्वरूप मेरे दुःखोंका क्षय हो, कर्मोंका क्षय हो, मुझे रत्नत्रयकी प्राप्ति हो, सुगतिमें गमन हो, समाधिमरण हो और मुझे जिनेंद्र भगवान्के गुणोंकी संप्राप्ति हो। ***
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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