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________________ ३७० कुंदकुंद-भारती अंगोंके नाम आयारं सुद्दयणं, ठाणं समवाय वियाहपण्णत्ती। णादा धम्मकहाओ, उवासयाणं च अज्झयणं ।।२।। वंदे अंतयडदसं, अणुत्तरदसं च पण्हवायरणं। एयारसमं च तहा, विवायसुत्तं णमंसामि।।३।। परियम्मसुत्तपढयाणुओगपुव्वगयचूलिया चेव। पवरवरदिट्ठिवाद, तं पंचविहं पणिवदामि।।४।। उप्पायपुव्वभग्गायणीय वीरियत्थि णत्थि य पवाद। णाणासच्चपवादं, आदा कम्मपवादं च।।५।। पच्चक्खाणं विज्जाणुवादकल्लाणणामवरपुव्वं । पाणावायं किरियाविसालमध लोयबिंदुसारसुदं ।।६।। आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृधर्मकथा, उपासकाध्ययन, अंत:कृद्दश, अनुत्तरोपपाददश, प्रश्नव्याकरण तथा ग्यारहवें विपाकसूत्र अंगको नमस्कार करता हूँ।।२-३।। परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका ये पाँच दृष्टिवाद अंगके भेद हैं। मैं उक्त पाँच प्रकारके उत्कृष्ट दृष्टिवाद अंगको नमस्कार करता हूँ।।४।। उत्पादपूर्व, अग्रायणीय, वीर्यप्रवाद, अस्तिनास्तिप्रवाद, ज्ञानप्रवाद, सत्यप्रवाद, आत्मप्रवाद, कर्मप्रवाद, प्रत्याख्यान, विद्यानुवाद, कल्याणनामपूर्व, प्राणवाद, क्रियाविशाल और लोकबिंदुसार ये चौदह पूर्व है।।५-६।। पूर्वोमें वस्तुनामक अधिकारोंकी संख्या दस चउदस अट्ठारस, बारस तह य दोसु पुव्वेसु। सोलस वीसं तीसं, दसमम्मि य पण्णरसवत्थू।।७।। एदेसिं पुव्वाणं, जावदिओ वत्थुसंगहो भणिओ। सेसाणं पुव्वाणं, दस दस वत्थू पडिवदामि।।८।। पहले पूर्वमें दस, दूसरे पूर्वमें चौदह, तीसरे पूर्वमें आठ, चौथे पूर्वमें अठारह, पाँचवें और छठवें इन दो पूर्वोमें बारह बारह, सातवें पूर्वमें सोलह, आठवें पूर्वमें बीस, नौवें पूर्वमें तीस, दसवें पूर्वमें पंद्रह और शेष चार पूर्वोमें दस-दस वस्तु नामक अधिकार हैं। इन पूर्वोमें जितने वस्तु अधिकारोंका संग्रह किया गया है मैं उन सबको नमस्कार करता हूँ।।७-८।।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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