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अष्टपाहुड
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सूत्रपाहुड
अरहंतभासियत्थं, गणधरदेवेहिं गंथियं सम्म।
सुत्तत्थमग्गणत्थं, सवणा साहंति परमत्थं ।।१।। जिसका प्रतिपादनीय अर्थ अर्हतदेवके द्वारा कहा गया है, जो गणधरदेवोंके द्वारा अच्छी तरह रचा गया है और आगमके अर्थका अन्वेषण ही जिसका प्रयोजन है ऐसे परमार्थभूत सूत्रको मुनि सिद्ध करते हैं।।१।।
सुत्तम्मि जं सुदिटुं, आइरियपरंपरेण मग्गेण।
णाऊण दुविहसुत्तं, वट्टइ सिवमग्ग जो भब्यो।।२।। द्वादशांग सूत्रमें आचार्योंकी परंपरासे जिसका उपदेश हुआ है ऐसे शब्द-अर्थरूप द्विविध श्रुतको जानकर जो मोक्षमार्गमें प्रवृत्त होता है वह भव्य जीव है।।२।।
सुत्तम्मि जाणमाणो, भवस्स भवणासणं च सो कुणदि।
सूई जहा असुत्ता, णासदि सुत्ते सहा णोवि।।३।। जो मनुष्य सूत्रके जाननेमें निपुण है वह संसारका नाश करता है। जैसे सूत्र -- डोरासे रहित सूई नष्ट हो जाती है और सूत्रसहित सुई नष्ट नहीं होती।।३।।
पुरिसो वि जो ससुत्तो, ण विणासइ सो गओ वि संसारे।
सच्चेयणपच्चक्खं, णासदि तं सो अदिस्समाणो वि।।४।। वैसे ही जो पुरुष सूत्र -- आगमसे सहित है वह चतुर्गतिरूप संसारके मध्य स्थित होता हुआ भी नष्ट नहीं होता है। भले ही वह दूसरोंके नाम द्वारा दृश्यमान न हो फिर भी स्वात्माके प्रत्यक्षसे वह उस संसारको नष्ट करता है।।४।।
सुत्तत्थं जिणभणियं, जीवाजीवादि बहुविहं अत्थं।
हेयाहेयं च तहा, जो जाणइ सो हु सद्दिट्ठी।।५।। जो मनुष्य जिनेंद्र भगवान्के द्वारा कहे गये सूत्रके अर्थको, जीव-अजीवादि बहुत प्रकारके पदार्थोंको तथा हेय-उपादेय तत्त्वको जानता है वही वास्तवमें सम्यग्दृष्टि है।।५।।
जं सुत्तं जिणउत्तं, ववहारो तह जाण परमत्थो।
तं जाणिऊण सोई, लहइ सुहं खवइ मलपुंज।।६।। जो सूत्र जिनेंद्र भगवान्के द्वारा कहा गया है उसे व्यवहार तथा निश्चयसे जानो। उसे जानकर ही