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नियमसार
मनोगुप्तिका लक्षण कालुस्समोहसण्णारागद्दोसाइअसुहभावाणं ।
परिहारो मणगुत्ती, ववहारणयेण परिकहियं । । ६६।।
कलुषता, मोह, संज्ञा, राग, द्वेष आदि अशुभ भावोंका त्याग है उसे व्यवहार नयसे मनोगुप्ति कहा गया है ।। ६६ ।।
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वचनगुप्तिका लक्षण
थीराजचोरभत्तकहादिवयणस्स पावहेउस्स ।
परिहारो वचगुत्ती, अलीयादिणियत्तिवयणं वा ।। ६७ ।।
पापके कारणभूत स्त्री, राज, चोर और भोजन कथा आदि संबंधी वचनोंका परित्याग अथवा असत्य आदिके त्यागरूप जो वचन वह वचनगुप्ति है ।। ६७ ।।
कायगुप्तिका लक्षण
बंधणछेदणमारण, आकुंचण तह पसारणादीया ।
कायकिरियाणियत्ती, णिद्दिट्ठा कायगुत्तित्ति । । ६८ ।।
बाँधना, छेदना, मारना, सकोड़ना तथा पसारना आदि शरीरसंबंधी क्रियाओंसे निवृत्ति होना
है । । ६८ ।।
निश्चयनयसे मनोगुप्ति और वचनगुप्तिका स्वरूप
जा रायादिणियत्ती, मणस्स जाणीहि तम्मणोगुत्ती ।
अलियादिणियत्तिं वा, मोणं वा होइ वदिगुत्ती ।। ६९ ।।
मनकी जो रागादि परिणामोंसे निवृत्ति है उसे मनोगुप्ति जानो और असत्यादिकसे निवृत्ति अथवा मौन धारण करना वचनगुप्ति है । । ६९ ।।
निश्चयनयसे कायगुप्तिका स्वरूप
कायकिरियाणियत्ती, काउस्सग्गो सरीरगे गुत्ती ।
हिंसाइणियत्ती वा, सरीरगुत्तित्ति णिद्दिट्ठा ।। ७०।।
शरीरसंबंधी क्रियाओंका त्याग करना अथवा कायोत्सर्ग करना कायगुप्ति है अथवा हिंसादि पापोंसे निवृत्ति होना कायगुप्ति है ऐसा कहा गया है। । ७० ।।
अर्हत् परमेश्वरका स्वरूप
घणघाइकम्मरहिया, केवलणाणाइ परमगुणसहिया । चोत्तिस अदिस अजुत्ता, अरिहंता एरिसा होंति ।। ७१ । ।