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________________ कुदकुद-भारता भावार्थ --जीवादिक द्रव्योंमें जो समय-समयमें वर्तनारूप परिणमन होता है उसका निमित्त कारण काल द्रव्य है। धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन चार द्रव्योंके जो गुण तथा पर्याय हैं वे सदा स्वभावरूप ही होते हैं, उनमें विभावरूपता नहीं आती।।३३।।। अस्तिकाय तथा उसका लक्षण एदे छद्दव्वाणि य कालं मोत्तूण अत्थिकायत्ति। णिद्दिट्ठा जिणसमये काया हु बहुपदेसत्तं ।।३४।। काल द्रव्यको छोड़कर ये छह द्रव्य जिनशासनमें 'अस्तिकाय' कहे गये हैं। बहुप्रदेशीपना कायद्रव्यका लक्षण है। भावार्थ -- जिनागममें काल द्रव्यको छोड़कर शेष जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये पाँच द्रव्य अस्तिकाय कहे कहे हैं। जिनमें बहुत प्रदेश हों उन्हें अस्तिकाय कहते हैं। काल द्रव्य एकप्रदेशी है अतः वह अस्तिकायमें सम्मिलित नहीं है।।३४ ।। किस द्रव्यके कितने प्रदेश हैं इसका वर्णन संखेज्जासंखेज्जाणंतपदेसा हवंति मुत्तस्स। धम्माधम्मस्स पुणो, जीवस्स असंखदेसा हु।।३५।। लोयायासे ताव, इदरस्स अणंतयं हवे देसा। कालस्स ण कायत्तं, एयपदेसो हवे जम्हा।।३६।। मूर्त अर्थात् पुद्गल द्रव्यके संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेश होते हैं। धर्म, अधर्म तथा एक जीव द्रव्यके असंख्यात प्रदेश हैं । लोकाकाशमें धर्मादिकके समान असंख्यात प्रदेश हैं, परंतु अलोकाकाशमें अनंत प्रदेश हैं। काल द्रव्यमें कायपना नहीं है, क्योंकि वह एकप्रदेशी है।।३५-३६।। द्रव्योंमें मूर्तिक तथा अमूर्तिक चेतनाका अभाव पुग्गलदव्वं मोत्तं, मुत्तिविरहिया हवंति सेसाणि। चेदणभावो जीवो, चेदणगुणवज्जिया सेसा।।३७।। पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है, शेष द्रव्य अमूर्तिक हैं। जीव द्रव्य चेतन है और शेष द्रव्य चेतनागुणसे रहित हैं।।३७।। इस प्रकार श्री कुंदकुंदाचार्य विरचित नियमसार ग्रंथमें अजीवाधिकार नामका दूसरा अधिकार समाप्त हुआ।।२।। * * *
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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