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________________ प्रवचनसार आगमचक्खू साहू, इंदियचक्खूणि सव्वभूदाणि। देवा य' ओहिचक्खू, सिद्धा पुण सव्वदो चक्खू।।३४।। मुनि आगमरूपी नेत्रोंके धारक हैं, संसारके समस्त प्राणी इंद्रियरूपी चक्षुओंसे सहित हैं, देव अवधिज्ञानरूपी नेत्रसे युक्त हैं और अष्टकर्मरहित सिद्ध भगवान् सब ओरसे चक्षुवाले हैं अर्थात् केवलज्ञानके द्वारा समस्त पदार्थोंको युगपत् जाननेवाले हैं।।३४ ।। आगे आगमरूपी चक्षुके द्वारा ही सब पदार्थ जाने जाते हैं ऐसा कहते हैं -- सव्वे आगमसिद्धा, अत्था गुणपज्जएहिं चित्तेहिं। जाणंति आगमेण हि पेछित्ता तेवि ते समणा।।३५ ।। विविध गुणपर्यायोंसे सहित जीवाजीवादि समस्त पदार्थ आगमसे सिद्ध हैं। निश्चयसे उन पदार्थोंको वे महामुनि आगमके द्वारा ही जानते हैं।।३५ ।। जिसे आगमज्ञान नहीं है वह मुनि ही नहीं है ऐसा कहते हैं -- आगमपुव्वा दिट्ठी, ण भवदि जस्सेह संजमो तस्स। णत्थित्ति भणइ सुत्तं, असंजदो "हवदि किध समणो।।३६।। इस लोकमें जिसके आगमज्ञानपूर्वक सम्यग्दर्शन नहीं होता है उसके संयम नहीं होता है ऐसा सिद्धांत कहते हैं। फिर जिसके संयम नहीं है वह मुनि कैसे हो सकता है? जिस पुरुषके प्रथमही आगमको जानकर पदार्थोंका श्रद्धान न हुआ हो उस पुरुषके संयम भाव भी नहीं होता है यह निश्चय है और जिसके संयम नहीं है वह मुनि कैसे हो सकता है? अर्थात् नहीं हो सकता है। मुनि बननेके लिए आगमज्ञान, सम्यग्दर्शन और तीनों संयमकी प्राप्ति आवश्यक है।।३६ ।। आगे जब तक आगमज्ञान, तत्त्वार्थश्रद्धान और संयम इन तीनोंकी एकता नहीं होती तबतक मोक्षमार्ग प्रकट नहीं होता ऐसा कहते हैं -- ण हि आगमेण सिज्झदि, सद्दहणं जदि ण अत्थि अत्थेस। ___ सद्दहमाणो अत्थे, असंजदो वा ण णिव्वादि।।३७ ।। यदि जीवाजीवादि पदार्थों में श्रद्धान नहीं है तो मात्र आगमके जान लेनेसे ही जीव सिद्ध नहीं होता है। अथवा पदार्थोंका श्रद्धान करता हुआ भी यदि असंयत हो तो भी निर्वाण प्राप्त नहीं कर सकता है। सिद्ध होनेके लिए आगमज्ञान, पदार्थश्रद्धान और संयम तीनोंका यौगपद्य -- एक समय प्राप्त होना ही समर्थ कारण है।।३७।। १. देवादि ज. वृ. । २. आगमेण य ज. वृ. । ३. पेच्छित्ता ज. वृ. ।४. हवदि ज. वृ.। ५. होदि ज. वृ. । ६. किह ज. वृ. । ७. जदि वि णत्थि ज.व. ।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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