SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीस कुंदकुंद-भारती अर्थात् जिसके हृदयमें अरहंत आदि विषयक राग अणुमात्र भी विद्यमान है वह समस्त आगमका धारी होकर भी स्वसमयको नहीं जानता है। सूक्ष्म परसमयका वर्णन करते हुए कहा है कि यदि ज्ञानी -- सराग सम्यग्दृष्टि जीव भी अज्ञान -- शुद्धात्म परिणतिसे विलक्षण अज्ञानके कारण, शुद्ध संप्रयोग -- अरहंत आदिककी भक्तिसे दुःखमोक्ष -- सांसारिक दुःखोंसे छुटकारा होता है यदि ऐसा मानता है तो वह भी परसमयरत कहलाता है। गाथा इस प्रकार है -- अण्णाणादो णाणी जदि मण्णदि सुद्धसंपयोगादो। हवदित्ति दुक्खमोक्खं परसमयरदो हवदि जीवो।।१६५ ।। इस गाथाकी संस्कृत टीकामें अमृतचंद्रसूरिने कहा है कि सिद्धिके साधनभूत अरहंत आदि भगवंतोंमें भक्तिभावसे अनुरंजित चित्तप्रवृत्ति यहाँ शुद्ध संप्रयोग है। अज्ञान अंशके आवेशसे यदि ज्ञानवान् भी, 'उस शुद्ध संप्रयोगसे मोक्ष होता है' ऐसे अभिप्रायके द्वारा खिन्न होता हुआ उसमें (शुद्ध संप्रयोगमें) प्रवर्ते तो वह भी रागांशके सद्भावके कारण परसमयरत कहलाता है, तो फिर निरंकुश रागरूप कालिमासे कलंकित अंतरंगवृत्तिवाला इतरजन क्या परसमयरत नहीं कहलायेगा? अवश्य कहलावेगा। तात्पर्य यह है कि जब सरागसम्यग्दष्टि भी रागांशके विद्यमान होनेसे परसमयरत है तब जो स्पष्ट ही रागसे कलुषित है वह परसमय कैसे नहीं होगा? श्री कुंदकुंद स्वामीने स्पष्ट कहा है -- अरहंत सिद्धचेदिय पवयणगणभत्तिसंपण्णो। बंधदि पुण्णं बहुसो ण दु सो कम्मक्खयं कुणदि।।१६६।। अर्थात् अरहंत सिद्ध परमेष्ठी, जिनप्रतिमा तथा साधुसमूहकी भक्तिसे संपन्न मनुष्य बहुत प्रकारका पुण्यबंध करता है, परंतु कर्मोका क्षय नहीं करता। कर्मक्षयका प्रमुख कारण प्रशस्त और अप्रशस्त -- सभी प्रकारके रागका अभाव होना ही है। पूर्ण वीतराग दशा होनेपर अंतर्मुहूर्तके अंदर नियमसे घातिचतुष्कका क्षय होकर अरहंत अवस्था प्रकट हो जाती है। जिसकी अरहंत अवस्था प्रकट हो जाती है वह उसी भवसे निर्वाणको प्राप्त करता है।। अरहंत सिद्ध चेदिय पवयणभत्तो परेण णियमेण। जो कुणदि तवोकम्म सो सुरलोगं समादियदि।।१७१।। अर्थात् अरहंत, सिद्ध, जिनप्रतिमा तथा जिनागमकी भक्तिसे युक्त जो पुरुष उत्कृष्ट संयमके साथ तपस्या करता है वह स्वर्गलोकको प्राप्त होता है। कहनेका तात्पर्य यह है कि अरहंतादिककी भक्तिरूप शुभ राग देवायुके बंधका कारण है, मोक्षका कारण नहीं। इसे परंपरासेही मोक्षका कारण कहा जा सकता है। मोक्षका साक्षात् कारण बतलाते हुए ग्रंथांतमें कहा है -- तम्हा णिब्बुदिकामो रागं सव्वत्थ कुणदि मा किंचि। सो तेण वोदरागो भवियो भवसागरं तरदि।।१७२।। इसलिए निर्वाणकी इच्छा रखनेवाला पुरुष सर्वत्र -- शुभ-अशुभ सभी अवस्थाओंमें कुछ भी राग मत करे। उसीसे यह भव्य जीव वीतराग होता हुआ भवसागर -- संसाररूपी समुद्रको तरता है। अर्थात् मोक्षका साक्षात् कारण परम १. 'अहंदादिषु भगवत्सु सिद्धिसाधनीभूतेषु भक्तिबलानुरञ्जिता चित्तवृत्तिरत्र शुद्धसम्प्रयोगः। अथ खल्वज्ञानलवावेशाद्यदि यावज्ज्ञानवानपि ततः शुद्धसम्प्रयोगानमोक्षो भवतीत्यभिप्रायेण खिद्यमानस्तत्र प्रवर्तते तदा तावत्सोऽपि रागलवसद्भावात्परसमयरत इत्युपगीयते। अथ किं न पुनर्निरङ्कुशरागकलिकलङ्कितान्तरङ्गवृत्तिरितरो जन इति।'
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy