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प्रवचनसार
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ज्ञान आत्मा है ऐसा माना गया है, चूँकि ज्ञान आत्माके विना नहीं होता इसलिए ज्ञान आत्मा है और आत्माके सिवाय अन्य गुणोंका भी आश्रय है अत: ज्ञानरूप भी है और अन्यरूप भी है।
आत्मा अनंत गुणोंका पिंड है, ज्ञान उन अनंत गुणोंमें एक प्रधान गुण है और आत्माके सिवाय अन्यत्र नहीं पाया जाता है, इसलिए गुणगुणीमें अभेद विवक्षा कर ज्ञानको आत्मा कह दिया है। परंतु आत्मा जिस प्रकार ज्ञान गुणका आधार है उसी प्रकार अन्य गुणोंका भी आधार है। इसलिए ज्ञानगुणके आधारकी अपेक्षा आत्मा ज्ञानरूप है तथा अन्य गुणोंके आधारकी अपेक्षा ज्ञानरूप नहीं भी है।।२७ ।। आगे ज्ञान न तो ज्ञेयमें जाता है और न ज्ञेय ज्ञानमें जाता है ऐसा प्ररूपण करते हैं --
णाणी णाणसहावो, अत्था' णेयापगा हि णाणिस्स।
रूवाणि व चक्खूणं, णेवण्णोण्णेसु वटुंति ।।२८।। निश्चयसे आत्मा ज्ञानस्वभाववाला है और पदार्थ उस ज्ञानी -- आत्माके ज्ञेयस्वरूप हैं। जिस प्रकार रूपी पदार्थ चक्षुओंमें प्रविष्ट नहीं होते और चक्षु रूपी पदार्थों में प्रविष्ट नहीं होते उसी प्रकार ज्ञेय ज्ञानी आत्मामें प्रविष्ट नहीं है और ज्ञानी ज्ञेय पदार्थों में प्रविष्ट नहीं है। पृथक् रहकर ही इन दोनोंमें ज्ञेयज्ञायक संबंध है।।
आगे यद्यपि निश्चयसे ज्ञानी-ज्ञेयोंमें -- पदार्थों में प्रविष्ट नहीं होता है तो व्यवहारसे प्रविष्टके समान जान पड़ता है ऐसा कथन करते हैं --
ण पविट्ठो णाविट्ठो, णाणी णेयेसु रूवमिव चक्खू।
जाणदि पस्सदि णियदं, अक्खातीदो जगमसेसं ।।२९।। इंद्रियातीत अर्थात् अतींद्रिय ज्ञानसहित आत्मा जाननेयोग्य पदार्थों में प्रविष्ट नहीं होता और प्रविष्ट नहीं होता सर्वथा ऐसा भी नहीं है, व्यवहारकी अपेक्षा प्रविष्ट होता भी है। वह रूपी पदार्थको नेत्रकी तरह समस्त संसारको निश्चित रूपसे जानता है।
जिस प्रकार चक्षु रूपी पदार्थमें प्रविष्ट नहीं होता फिर भी वह उसे देखता है इसी प्रकार आत्मा जाननेयोग्य पदार्थमें प्रविष्ट नहीं होता फिर भी वह उसे जानता है। परंतु दृश्य-दर्शक संबंध होनेकी अपेक्षा व्यवहारसे जिस प्रकार चक्षु रूपी पदार्थमें प्रविष्ट हुआ कहलाता है उसी प्रकार ज्ञेय-ज्ञायक संबंध होनेकी अपेक्षा व्यवहारसे आत्मा प्रविष्ट हुआ कहलाता है।।२९।। यो आगे व्यवहारसे ज्ञान पदार्थों में प्रवर्तता है ऐसा उदाहरणपूर्वक कहते हैं --
रदणमिह इंदणीलं, दुद्धज्झसियं जहा सभासाए।
अभिभूय तंपि दुद्धं, वट्टदि तह णाणमत्थेसु।।३०।। इस लोकमें जिस प्रकार दूधमें डुबाया हुआ इंद्रनील मणि अपनी कांतिसे उस दूधको अभिभूत