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________________ कुन्दकुन्द-भारती णेव य जीवट्ठाणा, ण गुणढाणा य अस्थि जीवस्स। जेण दु एदे सव्वे, पुग्गलदव्वस्स परिणामा।।५५।। जीवके न वर्ण है, न गंध, न रस है न स्पर्श है, न 'रूप है न शरीर है, न संस्थान है, न संहनन है, न राग है, न द्वेष है, न मोह है, न प्रत्यय है, न कर्म है, न वर्ग है, न वर्गणा है, न कोई स्पर्धक है, न अध्यवसाय स्थान है, न अनुभाग स्थान है, न कोई योगस्थान है, न बंधस्थान है, न उदयस्थान है, न मार्गणास्थान है, न स्थितिबंधस्थान है, न संक्लेशस्थान है, न संयमलब्धिस्थान है, न जीवसमास है और न गुणस्थान है। क्योंकि ये सब पुद्गल द्रव्यके परिणाम हैं ।।५०-५५ ।। आगे शिष्य प्रश्न करता है कि यदि ये वर्णादि भाव जीवके नहीं हैं तो अन्य ग्रंथों में उन्हें जीवका क्यों कहा है? इसका समाधान करते हैं -- ववहारेण दु एदे, जीवस्स हवंति वण्णमादीया। गुणठाणंताभावा, ण दु केई णिच्छयणयस्स।।५६।। ये वर्णको आदि लेकर गुणस्थानपर्यंत भाव व्यवहारनयसे जीवके होते हैं, परंतु निश्चयनयसे कोई भी भाव जीवके नहीं हैं। ।५६।। आगे निश्चयनयसे वर्णादि जीवके क्यों नहीं हैं? इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं -- एएहि य संबंधो, जहेव खीरोदयं मुणेदव्वो। ण य हुति तस्स ताणि दु, उवओगगुणाधिगो जम्हा।।५७।। इन वर्णादि भावोंके साथ जीवका संबंध दूध और पानीके समान जानना चाहिए अर्थात् जिस प्रकार दूध और पानी पृथक् पृथक् होनेपर भी एक क्षेत्रावगाह होनेसे एकरूप मालूम होते हैं उसी प्रकार जीव और वर्णादि भाव पृथक् पृथक् होनेपर भी एक क्षेत्रावगाह होनेसे एकरूप जान पड़ते हैं। वास्तवमें वे उसके नहीं हैं, क्योंकि जीव उपयोगगुणसे अधिक है अर्थात् वर्णादिकी अपेक्षा जीवके उपयोगगुण अधिक रहता है जो कि जीवको वर्णादिसे पृथक् सिद्ध करता है।।५७ ।। आगे दृष्टांतके द्वारा व्यवहार और निश्चयनयका अविरोध प्रकट करते हैं -- पंथे मुस्संतं पस्सिदूण लोगा भणंति ववहारी। मुस्सदि एसो पंथो, ण य पंथो मुस्सदे कोई।।५८।। तहजीवे कम्माणं, णोकम्माणं च पस्सिदुं वण्णं। जीवस्स एस वण्णो, जिणेहि ववहारदो उत्तो।।५९।। १. यत्स्पर्शादिसामान्यपरिणाममात्रं रूपं तन्नास्ति जीवस्य -- अमृताख्याति। २. मिथ्यात्वाविरतिकषाययोगलक्षणाः प्रत्ययाः।।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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