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प्रस्तावना
पंद्रह सुअवसर आया है। इस संकलनमें मैंने पूज्य वर्णीजीसे प्राप्त विशिष्ट दृष्टिके आधारपर संकलनका क्रम इस प्रकार रखा
है --
१. पंचास्तिकाय, २ . समयसार, ३. प्रवचनसार, ४. नियमसार, ५. अष्टपाहुड, ६. बारसणुपेक्खा और ७.
भक्तिसंग्रह ।
इस संस्करणमें पंचास्तिकाय, समयसार और प्रवचनसारकी गाथाओंका चयन अमृतचंद्र सूरिकृत संस्कृत टीकाके आधारपर किया गया है। जयसेन सूरिकृत टीकामें व्याख्यात विशिष्ट गाथाओंका उल्लेख टिप्पणमें किया गया है।
महानुभाव इन ग्रंथों का विस्तारसे स्वाध्याय करना चाहते हैं वे अलगसे प्रकाशित संस्करणोंका स्वाध्याय कर अपनी जिज्ञासाको पूर्ण कर सकते हैं और जो कुंदकुंद स्वामीकी पवित्र भारतीका पाठ करते हुए संक्षेपमें उसका भाव जानना चाहते हैं वे इस संस्करणसे लाभ उठावें ।
उक्त ग्रंथोंका परिचय देनेके पूर्व श्री कुंदकुंदाचार्यके जीवनवृत्तपर कुछ प्रकाश डालना उचित मालूम होता है। आचार्यश्री कुंदकुंद
कुंदकुंदाचार्य और उनका प्रभाव
दिगंबर जैनाचार्योंमें कुंदकुंदका नाम सर्वोपरि है। मूर्तिलेखों, शिलालेखों, ग्रंथप्रशस्ति लेखों एवं पूर्वाचार्योंके संस्करणोंमें कुंदकुंद स्वामीका नाम बड़ी श्रद्धाके साथ लिया मिलता है।
मङ्गलं भगवान्वीरो मङ्गलं गौतमो गणी ।
मङ्गलं कुन्दकुन्दार्यो जैनधर्मोऽस्तु मङ्गलम् ।।
इस मंगल के द्वारा भगवान महावीर और उनके प्रधान गणधर गौतमके बाद कुंदकुंद स्वामीको मंगल कहा गया है। इनकी प्रशस्तिमें कविवर वृंदावनका निम्नांकित सवैया अत्यंत प्रसिद्ध है, जिसमें बतलाया गया है कि मुनींद्र कुंदकुंद - सा आचार्य न हुआ है, न है और न होगा
जासके मुखारविंदतें प्रकाश भासवृंद स्यादवाद जैन वैन इंद कुंदकुंद से । तासके अभ्यास विकास भेद ज्ञात होत मूढ़ सो लखे नहीं कुबुद्धि कुंदकुंद से। देत हैं अशीस शीस नाय इंद चंद जाहि
मोह मार खंड मारतंड कुंदकुंद से । विशुद्धि बुद्धि वृद्धिदा प्रसिद्ध ऋद्धि सिद्धिदा
हुए हैं न होहिंगे मुनिंद कुंदकुंद से ।।
श्री कुंदकुंद स्वामीके इस जयघोषका कारण है उनके द्वारा प्रतिपादित वस्तुतत्त्वका, विशेषतया आत्मतत्त्वका विशद वर्णन । समयसार आदि ग्रंथोंमें उन्होंने परसे भिन्न तथा स्वकीय गुण पर्यायोंसे अभिन्न आत्माका जो वर्णन किया है वह अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने इन ग्रंथोंमें अध्यात्मधारारूप जिस मंदाकिनीको प्रवाहित किया है उसके शीतल एवं पावन प्रवाहमें अवगाहन कर भवभ्रमण श्रांत पुरुष शाश्वत शांतिको प्राप्त करते हैं।
कुंदकुंदाचार्यका विदेह गमन
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श्री कुंदकुंदाचार्यके विषयमें यह मान्यता प्रचलित है कि वे विदेह क्षेत्र गये थे और सीमंधर स्वामीकी दिव्य