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कुन्दकुन्द-भारती
सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रकी एकता मोक्षका मार्ग है
सम्मत्तणाणजुत्तं, चारित्तं रागदोसपरिहीणं । मोक्खस्स हवदि मग्गो, भव्वाणं लद्धबुद्धीणं । । १०६ ।।
सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानसे युक्त राग-द्वेषरहित सम्यक् चारित्र मोक्षका मार्ग है। यह मोक्ष मार्ग स्वपरभेद विज्ञानी भव्यजीवोंको ही प्राप्त होता है । । १०६ ।।
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सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रका स्वरूप सम्मत्तं सद्दहणं, भावाणं तेसिमधगमो णाणं ।
चारित्तं समभावो, विसयेसु विरूढमग्गाणं । । १०७ ।।
पूर्वोक्त जीवादि पदार्थोंका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है, उन्हींका ज्ञान होना सम्यग्ज्ञान है और पंचेंद्रियोंके इष्ट अनिष्ट विषयोंमें समताभाव धारण करना सम्यक्चारित्र है। यह मोक्षमार्गमें दृढ़ताके साथ प्रवृत्ति करनेवालोंके ही होता है । । १०७ ।।
नौ पदार्थों के नाम
जीवाजीवाभावा, पुण्णं पावं च आसवं तेसिं ।
संवरणिज्जरबंधो, मोक्खो य हवंति ते अट्ठा ।। १०८ । ।
जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष ये नौ पदार्थ हैं । । १०८ । । जीवोंके भेद
१.
जीवा संसारत्था, णिव्वादा चेदणप्पगा दुविहा ।
ओगलक्खणा वि य, देहादेहप्पवीचारा । । १०९ ।।
जीव दो प्रकारके हैं -- संसारी और मुक्त। दोनों ही चैतन्यस्वरूप और उपयोगलक्षणसे युक्त हैं। संसारी जीव शरीरसे युक्त हैं और मुक्त जीव शरीरसे रहित हैं । । १०९ ।।
स्थावरकायका वर्णन
पुढवी य उदगमगणी, वाउवणण्फदिजीवसंसिदा काया । देति खलु मोहबहुलं, फासं बहुगा वि ते तेसिं । । ११० ।।
पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति ये पुद्गलके पर्याय जीवके साथ मिलकर काय कहलाने
'सम्यग्दर्शनज्ञानसन्निधानादमार्गेभ्यः समग्रेभ्यः परिच्युत्य स्वतत्त्वे विशेषेण रूढमार्गाणां सतामिन्द्रियानिन्द्रियविषयभूतेष्वर्थेषु' -- ता. वृ. । 'पूर्वोक्तसम्यक्त्वज्ञानबलेन समस्तान्यमार्गेभ्यः प्रच्युत्य विशेषेण रूढमार्गाणां परिज्ञातमोक्षमार्गाणाम्।'
- ज. वृ.
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