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________________ कुन्दकुन्द-भारती सत् अर्थात् उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यरूप स्वभावसे संयुक्त जीव और पुद्गलोंका जो परिणमन दृष्टिगोचर होता है उससे कालद्रव्यका अस्तित्व सिद्ध हो जाता है।।२३।। काल द्रव्यका लक्षण ववगदपणवण्णरसो, ववगददोगंधअट्ठफासो य। अगुरुलहुगो अमुत्तो, वट्टणलक्खो य कालो त्ति।।२४।। काल द्रव्य पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गंध और आठ स्पोंसे रहित है, षड्गुणी हानि वृद्धिरूप अगुरुलघु गुणसे युक्त है, अमूर्तिक है और वर्तनालक्षणसे सहित है।।२४ ।। व्यवहारकालका वर्णन समओ णिमिसो कट्टा, कला य णाली तदो दिवारत्ती। मासो दु अयण संवच्छरो त्ति कालो परायत्तो।।२५।। समय, निमेष, काष्ठा, कला, नाड़ी, दिन-रात, मास, ऋतु, अयन और वर्ष यह सब व्यवहारकाल है। चूंकि यह व्यवहारकाल सूर्योदय, सूर्यास्त आदि पर पदार्थोंके निमित्तसे अनुभवमें आता है अतः पराधीन है।।२५।। पुद्गलद्रव्यके निमित्तसे व्यवहारकालकी उत्पत्तिका वर्णन णत्थि चिरं वा खिप्पं, मत्तारहिदं तु सा वि खलु मत्ता। पुग्गलदव्वेण विणा, तम्हा कालो दु पडुच्चभवो।।२६।। कालकी मात्रा -- मर्यादाके बिना विलंब और शीघ्रताका व्यवहार नहीं हो सकता, अत: उसका वर्णन अवश्य करना चाहिए और चूँकि कालकी मात्रा पुद्गल द्रव्यके बिना प्रकट नहीं हो सकती इसलिए उसे पुद्गल द्रव्यके निमित्तसे उत्पन्न हुआ माना जाता है।।२६।। इस प्रकार श्री कुंदकुंददेव द्वारा विरचित पंचास्तिकाय ग्रंथमें षड्द्रव्य और पंचास्तिकायके सामान्य स्वरूपको कहनेवाला 'पीठबंध' समाप्त हुआ। *** __ जीवका स्वरूप जीवोत्ति हवदि चेदा, उपओगविसेसिदो पहू कत्ता। भोत्ता य देहमत्तो, ण हि मुत्तो कम्मसंजुत्तो।।२७।। जो निश्चयनयकी अपेक्षा भावप्राणोंसे और व्यवहारनयकी अपेक्षा द्रव्यप्राणोंसे जीवित रहता है वह जीव कहलाता है। यह जीव निश्चय नयकी अपेक्षा चेतनामय है और व्यवहार नयकी अपेक्षा
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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