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________________ २ कर्म सिद्धान्त - १३. संक्रमण आदि अधिकार १०/२ में निषेक रचना का कथन करते हुए यह बताया गया है कि प्रति समय एक समय-प्रबद्ध प्रमाण द्रव्य बंधता है और प्रति समय एक समय-प्रबद्ध प्रमाण ही द्रव्य उदय में आता है। वहाँ बन्ध को प्राप्त होने वाले एक समय-प्रबद्ध में जिस प्रकार निषेक रचना की गई थी उसी प्रकार यहाँ उदय में आने वाले एक समय-प्रबद्ध में निषेक रचना की जाती है। विशेषता केवल इतनी है कि वहाँ जिसे उदयागत समय-प्रबद्ध कहा गया था उसे यहाँ स्पर्धक कहा जाता है। वहाँ जिस प्रकार एक समय-प्रबद्ध को समान प्रकृति वाली कर्म वर्गणाओं के रूप में विभक्त किया गया था उसी प्रकार यहाँ एक स्पर्धक को समान शक्ति-अंशों वाली अनुभाग वर्गणाओं के रूप में विभक्त किया जाता है। .. जिस प्रकार वहाँ एक-एक कार्मण वर्गणा को लेकर ईंटों की भाँति ऊपर नीचे चुना गया था, उसी प्रकार यहाँ एक-एक अनुभाग वर्गणा को लेकर ईंटों की भाँति ऊपर नीचे चुना जाता है। विशेषता यह है कि वहाँ की निषेक रचना में हानिक्रम था अर्थात् नीचे-नीचे वाले समयों पर दिये गए निषेकों में अधिक वर्गणायें थीं और ऊपर-ऊपर वाले निषेकों में कम । यहाँ वृद्धि क्रम है। नीचे सबसे अल्प शक्तिवाली अनुभाग वर्गणा रखी जाती है और उसके ऊपर क्रमश: अधिक-अधिक शक्तिवाली वर्गणायें दी जाती हैं । यहाँ तक कि अन्तिम निषेक में सर्वाधिक शक्तिवाली वर्गणायें प्राप्त होती हैं। ___ जीव के परिणामों के निमित्त से, निषकों की भाँति ऊपर वाली वर्गणायें अपने स्थान से च्युत होकर नीचे की कुछ वर्गणाओं में मिल जाती हैं, अर्थात् अधिक शक्ति को छोड़कर हीन शक्ति वाली हो जाती हैं। यही अनुभाग का अपकर्षण है। इसके द्वारा अपने समय पर अवस्थित रहते हुए भी निषेकों का अनुभाग घट जाता है। स्थिति के अपकर्षणवत् यह भी दो प्रकार का है-साधारण जीव को होने वाला अव्याघात अपकर्षण और तपस्वियों को होने वाला व्याघात अपकर्षण । मोक्ष मार्ग में व्याघात अपकर्षण कार्यकारी है, जिसमें प्रति समय अनन्त-अनन्त गुणे अनुभाग का छेद होता है। ५. उत्कर्षण अपकर्षण की ही भाँति उत्कर्षण को समझना। अन्तर केवल इतना है कि वहाँ तो ऊपर के निषेक को नीचे वाले निषेक में अथवा ऊपर वाली अनुभाग वर्गणा को नीचे वाली अनुभाग वर्गणा में मिलाया जाता था और यहाँ नीचे वाले निषेक को ऊपर वाले निषेक में अथवा नीचे वाली वर्गणा को ऊपर वाली वर्गणा में मिलाया जाता है। नीचे वाले निषेक के ऊपर चले जाने से स्थिति बढ़ जाती है और इसी प्रकार नीचे वाली वर्गणा के ऊपर चले जाने से अनुभाग बढ़ जाता है। विशेष विस्तार आगम से जानना चाहिये।
SR No.009554
Book TitleKarma Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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