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________________ चित्र परिचय पुस्तक के ऊपर कवर पर जो चित्र दिया गया है वह अनुक्त रूप से पुस्तक के आशय को प्रदर्शित करता है। इस चित्र में सागर के जल में निमग्न एक अर्ध विकसित कमल दिखाया गया है जिसका मुख जल से बाहर आकाश की ओर ऊपर उठा होने की बजाय नीचे की ओर झुका हुआ है । यहाँ कमल संसारी जीव के स्थान पर है और सागर अनन्त कर्म राशि रूप संसार के स्थान पर है। जिस प्रकार कमल का स्वभाव जलं से बाहर रहना है उस में डूबकर रहना नहीं, उसी प्रकार जीव का स्वभाव कर्मों के बन्धन से बाहर रहना है उनमें डूबकर रहना नहीं। जिस प्रकार स्वभाव विरुद्ध होने के कारण जल-मग्न कमल विकास की बजाय हास को ही प्राप्त होता है अर्थात् दुःख तथा ताप में जलता रहकर नष्ट हो जाता है। जिस प्रकार विकास रुद्ध हो जाने के कारण यह कमल निराशा में गर्दन नीचे को लटकाये हुए स्थित है उसी प्रकार विकास रुद्ध हो जाने के कारण संसारी जीव भी सदा निराशा में गर्दन लटकाये जीवन बिताता है। इस प्रकार यह चित्र कर्म-सलिल में निमग्न उस जीव की दयनीय दशा का निदर्शन करता है, जो जल में डूबे हुए कमल की भाँति आत्म-विकास से वञ्चित रह रहा है, और आशा-निराशा के झूले में झूलता हुआ अपना जीवन बिता रहा है। यदि गुरु-चरण-शरण को प्राप्त होकर सत्पुरुषार्थ जाग्रत करे तो धीर-धीरे इस महा सलिल से ऊपर उठकर संसार सागर को तर जाये। जिनेन्द्र वर्णी
SR No.009554
Book TitleKarma Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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