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________________ ( ५ ) मार्यखंड है और इसकी तीनों दिशाओं में पाँच पाँच म्लेच्टड है। इन्हीं आर्यखंडों में त्रेट शलाकादि उत्तम पुरुषों की उत्पत्ति होती है और इन्हीं खटोंमें अवसर्पिणी, उत्सर्पिणीके उपमानुपा यादि छ' काकी फिरन होती है । इस ही भरतक्षेत्र आर्यखंडमें एक मगघ नामका देश और रागृही नामकी नगरी हैं । इसीके पास उदयगिरि, सोनागिरि, खंडगिरि, रत्नागिरि और विपुलाचल नामकी पंच पहाड़ियाँ हैं । इन पहाड़ियों के कारण यह स्थान अत्यन्त मनोग्य मालूम होता है । पूर्व समय में इस नगरी की शोभा अवर्णनीय थी । नाना प्रका रके वन, उपवन, कुबे, बावड़ी, तालाब, नदी आदि से शोभित थी । चारों ओर बडे बड़े उत्तंग गगनचुंबी महल और ठौर ठौर जिनमंदिर ऐसे बन रहे थे, मानों अकृत्रिम चत्यालय हो हों। वे मंदिर नान प्रकार के चित्रोंसे चित्रित थे -कहीं तो स्वर्गकी संपत्ति दृष्टिगत होनी थी, तो कहीं नरककी वेदना दिख रही थी, कहीं तियंचगरि दुःखों का दृश्य दिखाई दे रहा था, तो कहीं रोगी, वियोगी, शोकी नरनारियोंका चित्र खिंच रहा था, कहीं भव-भोगोंसे विरक्त परम दिगंबर ऋषि अपनी ध्यान-मुद्रामें मन हुए तीन लोककी संपत्तिको तृणवत् त्यागे हुए निश्चल ध्यानयुक्त बैठे हुए मालम हो रहे थे, कहीं श्रीजिनेन्द्रकी परम वीतरागी मुद्राको देखकर तीव्रक्रपायों भी १, म्लेच्छखट उसे कहते है जहाँ रोग स्वेच्छाचारी अ--- ज्ञानरहित हों। इन सड़ों में भी कालचकी फिरन नहीं है । २. यह नगरी विहार स्टेशन से अनुमान १० कोलपर है। 35 समय विलकुल उजाड़ हो रही है।
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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