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(३६) और स्वामीका उपकार मानने लगे कि ओपहीके प्रभावसे हम सब मिले हैं, इत्यादि प्रशंसा योग्य वचन कहें । फिर राना श्रेणिकका व्याह राजा मृगांककी पुत्रीके साथ बहुत ही आनन्दसे हुआ। स्वामी उदासीनरूपसे घर में रहने लगे और अवसर विचारने लगे कि कब वह समय आवे जव कि मैं जिनदीक्षा लेकर इस संसारके झगड़ेको मिटाऊँ। कुछ दिन तक सब लोग रहे और फिर माज्ञा लेकर अपने २ निवासस्थानोको पधार गये । राना श्रेणिक भी निःशंक होकर सुखसे काल व्यतीत करने लगे।
इस प्रकार कुछ दिन बीते । एक दिन राना सभामें बैठे थे कि वनपालने वाकर विनती की
"हे नाथ ! इस नगरके सभीप एक महामुनिनाथ पधारे हैं, जिससे वनकी शोभा अतिशय हो रही है। सर्प और नौला, मूसा और बिलाव, सिंह और अग आदि जातिविरोधी जीव भो परस्पर मैत्री भावसे निकट बैठे हैं।" यह समाचार सुन रामाने वनपालको वहुत द्रव्य देकर संतोपित किया और मब पुरजन सहित कुमारक. लेकर मुनिकी बंदनाको चले । जव निकट पहुँचे, तव वाहनसे उतरकर पॉव प्यादे सन्मुख जाकर साष्टांग नमस्कार किया । मुनिने 'धर्मवृद्धि' दी और सबको धर्मका स्वरूप समझाया तब स्वामीने गुरुकी स्तुतिकर नमीभूत हो पूछा-" हे नाथ ! मेरे भवातर कहो।"
सो वे अवधिज्ञानी मुनि जवूस्वामीके भवांतर कहने लगे। स्वामीको भवातर सुनकर अत्यन्त वैराग्य हुआ। ठेक है