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(१७) प्राप्त होनेपर कोई चोरी नहीं करता । परंतु विद्युतचरने एक न मानी। रोगीको कुपथ्य हो मला मालूम होता है, पंछे चाहे प्राण ही क्यों न चले गावें । निदान राम अत्यन्त खेदित हो कहने लगे-"जो तुम यह दुष्ट सत्य नहीं छोड़ोगे तो किसी न किसी दिन अवश्य ही तुम्हारे प्राण जायगे और बहुत दुख उठाओगे।" तब विद्युतचर बोला-"पितानी ! मुझसे यह कृत्य नहीं छूटेगा। मैं तो चोग करके राव राज्यको लूट लट कर खाजगा अथवा आपला राज्य छोड़ विदेशमें चला जाऊँ ।' यह सुन रामाने लाचार हो देशसे निकल जानेकी आना दे दो। सत्य है न्यारी पुरुषोंका यही धर्म है कि चाहे अपना पुत्र हो व पिता अथना कैसा ही स्नेही क्यो न हो, उसको अपराध करनेपर अवश्य ही योग्य दण्ड देते है-पक्षपात कदापि नहीं करते। - विद्युतचर राजपुत्र वहां से निकलकर कई दिनोंमें रामगृही आया और कमला वेश्याके यहाँ रहने लगा। वहॉ वह सब नगरसे चोरी कर २ के वेश्याका घ भरने और इस तरह कालोय करने लगा।
इसी रामगृही नगरीमें अहंदास नामका सेट था, उसके निनमती. नामकी महा गीलवती स्त्री थो । सो यह विद्युत्वेग देव जिसकी तीन दिनको आयु शेष रह गई है वर्गसे चयकर उसके पुत्र होगा और तप करके भव ल तोड स्वारमातुभूतिरूप सच्चा मुख प्राप्त करेगा।
गौतमत्वामी के मुखसे यह कथन हो ही रहा था कि एक यज्ञ वहाँ गदगद हो नाचने लगा तब गाना अंणिकने विस्मित होकर