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गौतम चरित्र |
- सब बातोंको बतलाइये । प्रत्युत्तर में भगवान श्री गौतम स्वामी कहने लगे - तुम मनको स्थिर कर सुनो। ये विषय संसारको - सुख प्रदान करने वाले हैं ।
बीस कोड़ा कोड़ी सागरका एक कल्पकाल होता है, उसमें दश, दश कोडाकोड़ी सागरके अवसर्पिणी काल और उत्सपिणी काल होते हैं । इन दोनों कालोंमें प्रत्येकके छः भाग होते हैं - प्रथम सुषमा सुषमा द्वितीय सुषमा, तृतीय सुषमा दुषमा चतुर्थ दुषमा सुषमा पंचम दु:पमा और षष्टम दुःषमा, दुःषमा होते हैं। उत्सर्पिणीके काल ठीक इसके विपरीत हैं। इनमें प्रथम काल कोड़ाकोड़ी सागरका है । द्वितीय तीन कोड़ा कोड़ी - तृतीय दो कोड़ा कोड़ी, और चतुर्थ व्यालिस हजार वर्ष कम एक कोड़ा कोड़ी सागरका है। पंचम इक्कीस हजार वर्षका और षष्टम भी एक्कीस हजार वर्षका होता हैं, ऐसा जिनागम जानने वाले आचार्य कहते हैं। उपरोक्त पूर्वके तीन कालों में भोगोपभोगकी सामग्रियां कल्पवृक्षों से प्राप्त होती हैं, अतः उक्त तीनों कालोंको भोगभूमि कहते हैं । प्रथम कालमें जीवोंकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य; दूसरेमें दो पल्य और तीसरे में एक पल्यकी होती है। इसे भी उत्तम, मध्यम, जघन्य भोगभूमिके अनुरूप ही समझना चाहिए । पूर्व कालके आरंभ में वहांके मनुष्य ६ हजार धनुष, दूसरे कालके . आरंभ में चार हजार धनुष, और तीसरेके प्रारम्भमें दो हजार धनुष, ऊंचे होते हैं । भोगभूमिमें उत्पन्न स्त्री-पुरुषोंके शरीर का रंग पूर्व कालमें सूर्यकी प्रभाके समान, दूसरे कालमें चन्द्रमा
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