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प्रथम अधिकार। चराती हुई दिखलाई देती थीं ! वे ऐसी सुन्दरी थीं कि उन्हें देखकर पथिक लोग अपना मार्ग भूल जाते थे । वहांकी साधारण जनता धर्म अर्थ काम इन तीनों पुरुषार्थों में रत रहती थीं। इसके साथही जिन-धर्मके पालनमें अपूर्व उत्साह दिखलाती थीं शीलनत उनका गार था। वहां जिनेन्द्रदेवके गर्भ कल्याणकके समय जो रत्नोंकी वर्षा होती थी, उसे धारणकर वह भूमि वस्तुतः रत्नगर्भा हो गयी थी।
उसी मगधमें स्वर्ग लोक के समान रमणीक राजगृह नामका एक नगर है। वहाँ मनुष्य और देवता सभी निवास करते हैं। नगरके चारों ओर एक विस्तृत कोट वना हुआ था। वह कोट पक्षियों और विद्याधरोंके मार्गका अवरोधक था एवं शत्रुओंके लिये भय उत्पन्न करता था। उस कोटके निम्नभाग में निर्मल जलसे भरी हुई खाई थी। उसमें खिले हुए कमल अपनी मनोरम सुगन्धिसे भ्रमरोंको एकत्रित कर लिया करते थे । नगरमें चन्द्रमाके वर्ण जैसे श्वेत अनेक जिनालय सुशोभित हो रहे थे, जिनके शिखरकी पताकायें आकाशको छूनेका प्रयत्न कर रही थीं। वहांके मानववृन्द जल-चन्दन आदि आठों द्रव्यों से भगवान श्री जिनेन्द्र देवके चरण कमलोंकी पूजा कर उनके दर्शनोंसे अत्यन्त प्रसन्न होते थे। राजगृहके धर्मात्मा पुरुष मांगने वालोंकी इच्छासे भी अधिक धन प्रदान करते थे तथा इस प्रकार चिरकालतक.धनका अपूर्व संग्रह कर कुबेरको भी लज्जित करनेमें कुन्ठित नहीं होते थे । वहांके नवयुवक अपनी त्रियोंको अपूर्व सुख पहुंचा रहे थे। इसलिये वहांकी सुन्दरियों