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गौतम चरित्र । लोग अहिंसा, सत्य अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह इन पांचों व्रतोंका पूर्णरीतिसे पालन करते हैं और गृही अणुरूपले पालन करते है। जो मुनिराज हिंसा आदि पापोंसे सदा विरक्त रहते है, तथा शरीरका मोह नहीं करते, उन्हें शीघ्र ही मोक्षकी प्राप्ति होजाती है। जिन्होंने इन्द्रिय विषयक ज्ञानको त्याग दिया हैं तथा मन वचन कायको वशमें कर लेनेकी जिनमें शक्ति है, वे ही महापुरुष मुनि कहलाने के अधिकारी होते हैं। जिन्होंने सर्व परिगृहोंका सर्वथा परित्याग कर दिया है, उन्हें ही मोक्ष रूपी स्त्री स्वीकार करती है। शुभध्यानमें निरत मुनिराज ईर्या, भाषा, एषणा, आदान विक्षेपण और उत्सर्ग इन पांचों समितियोंका पालन करते हैं तथा उन्हींके अनुसार चलनेका नियम वनालेते हैं । जिस प्रकार सूर्यके उदय होते ही अन्धकार को सर्वथा विनाश होजाता है, उसी प्रकार तपश्चरणके द्वारा अंतरंग एवं बहिरंग दोनों प्रकारके कर्मोका समुदाय विनष्ट हो जाता है। पर विना तपश्चरणं किये कर्मके समूह नष्ट नहीं होते। वर्षाके अभाव में जिस प्रकार खेती नहीं होती, उसी प्रकार विना उत्तम :तपश्चरणके कर्मोंका विनाश होना संभव नहीं है। तपश्चरण ही कर्मरूपी धधकती हुई प्रबल अग्निको शांत कर देनेके लिए जलके समान हैं और अशुभ कर्मरूपी विशाल पर्वत श्रेणीको ध्वस्त करनेके लिए इन्द्रके वज्रके समान है। यह विषयरूपी सो को वशमें करनेके लिए मंत्रके समान है,विनरूपी हरिणोंको रोकनेके लिए जालके समान और अंधकारको विनष्ट करनेके लिए सूर्य जैसी शक्ति रखता है ।