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द्वितीय अधिकार। वाले बहुत मिलेंगे, पर ऐसे बहुत कम मिलेंगे जिनका चित्त स्त्रियाँमें न रमा हो । उस दुष्ट स्त्रियोंने मुनिराज पर घोर उपसर्ग किये थे, इसलिए उन्हें महापापका बन्ध हुआ। वे पाप कर्मके उदयसे कुष्ट रोगसे ग्रसित हुई। उन तीनोंकी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी थी। वे सदा पाप कर्ममें रत रहती थीं और लोग सदा उनकी निन्दा किया करते थे। वे तीनों महादुखी रहती थीं। आयुकी समाप्ति होनेपर रौद्रध्यानसे उनकी मृत्यु हुई। इन सब पाप कर्मोके उदयसे वे पांचवें नरकमें गयीं। उन्हें पांवों प्रकारके दुःख सहन करने पड़े। उनकी कृष्ण लेश्या थी। उन्हें वन्धन छेदन, कदथेन, पीड़न, तापन, ताड़न आदिके दुःख सहन करने पड़ते थे। उष्ण वायु तथा सद वायु सदा उनको उत्पीड़ित किया करती थीं। उन नारकीयोंका अवधिज्ञान दो कोस तकका था, शरीरकी ऊंचाई एक सौ पच्चीस हाथ और आयु सत्रह सागरकी थी। वे सबकी सब नपुन्सक थी। उनका शरीर भयानक और वे स्वभावसे भी भयानक थे। उनमें धर्मका तो नाम ही नहीं था । वे सबसे ईर्षा करते और सदा मार-मारकी रट लगाया करते थी। आयुकी समाप्ति पर वे नारकी स्त्रियां वहांसे बाहर हुई और परस्पर विरोधी शरीरोंमें उत्पन्न हुई। सवोंने एक साथही कोका बन्ध किया था,अतः वे बिल्ली सूकरी कुतिया और मुर्गी की योनियों में आयीं । वे हर प्रकारका कष्ट सहती और जीवोंकी हिंसा किया करती थीं। परस्पर लड़ना और उच्छिष्ट भोजनके द्वारा उनका जीवन निर्वाह होता था। इसके अतिरिक्त जहां भी जाती, वहांसे दुत्कार दी जाती