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द्वितीय अधिकार पहुंची । उनके साथ कथा, खडाम, दण्ड और अन्य बहुत सी योगिनियां थी। उन्हें भिक्षा मांग मांग कर अपना पेट पालना पड़ता था। यह भी सत्य ही हैं कि 'धुभुक्षितः कि न करोति पापम्' भूखे मनुष्य कौनसा पाप नहीं कर डालते अर्थात् भूखकी ज्वाला शान्त करनेके लिए सब कुछ करना पड़ता है। वे सदा प्रमाद करनेवाली वस्तुओं का सेवन करती थीं। मद्य, मांस आदि उनके दैनिक आहार थे । इसके अतिरिक्त वे मधु एवं अनेक जीवोंसे भरे हुए उदुम्बरों तकका भक्षण करती थीं। उनकी कामवासना इतनी प्रबल हो उठा थी कि ऊंच-नीचका कुछ भी विचार न कर जो जहां मिलता, उसीके साथ संभोग कर लेती थीं। यही नहीं वे सबके सामने ही ऐसी रागिनियां गाया करती थीं, जिससे योगियोंको भी काम उत्पन्न हुए विना नहीं रहता था। वे यह भी कहा करती थीं, कि हमे योग धारण किये १०० वर्षसे भी अधिक हो गये हैं।
सौभाग्यवश नगर में एक दिन धर्माचार्य नामके मुनिका आगमन हुआ। वे केवल आहारके लिए आये थे। मुनिमहाराज मौन धारण किये हुए, पर्वतके समान अचल और इन्द्रियोंको दमन करनेवाले थे। उन्होंने अपने मनको चशमें कर लिया था और शरीर से भी ममत्व का नाश होगया था। कठिन तपश्चर्या से उनके शरीर की क्षीणता बढ़ चली थी। वे शील संयम को धारण करने और चारित्र-पालनमें अत्यन्त तत्पर रहा करते थे। उन्होंने समस्त कषाओंका सर्वनाश कर दिया था। वे अपने धर्मोपदेश द्वारा अमृतकी वारि बहाया करते थे। वे क्षमाके अ