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द्वितीय अधिकार।
३१ था, वे अपनी भूखकी ज्वाला मिटानेके लिये वृक्षोंके फल खाने लगी। यहां विचारणीय है कि कहां तो रानीका पद और कहाँ आज योगिनीका वेष। केवल पापकर्मोके उदयसे ही मनुष्यको अशुभ कर्मोंकी प्राप्ति होती हैं।
दूसरे दिन कोमसे पीड़ित राजा मणियोंसे सजाये हुए रानीके सुन्दर महलमें जाने लगा उसने अन्यान्य परिजन वर्गको महलके बाहर ही छोड़ दिया और स्वयं सुगन्धित पदार्थोसे विलेपित महलके अन्दर जापहुंचा। उस दिन रानीके उस सुन्दर पलंगको देख राजाको अपूर्व प्रसन्नता हुई। उसके रोम रोम पुलकित हो उठे और नेत्र तथा मुह प्रफुल्लित हो रहे थे । उसने मन ही मन विचार किया कि, मैं इन्द्र हूं और मेरी रानी साक्षात् शक्ति है अर्थात् इन्द्राणी है । आज यह राजभवन इन्द्र भवनमा शोभायमान हो रहा है। यह सुन्दर पलंग शक्तिकी सजा है । इस प्रकार राजाका कोमल कामीहृदय आनन्द सागरमें गोते लगाने लगा। फिर भी उसने विचार किया कि आज रानी मेरा सत्कार क्यों नहीं करती है। इसका कारण राजाकी समझमें नहीं आ रहा था। उसने सोचा-संभवतः उसे कोई रोग अथवा मानसिक कष्ट तो नहीं हो गया है, अथवा मुझसे नाराज तो नहीं है। ऐसी ही विकट चिन्तास व्याकुल होकर राजा कहने लगा-रानी आज न उठनेका कारण शीघ्रताले बतला । इतना कहकर वह पलंगपर बैठ गया और अपने कोमल करोंसे उसने रानीका स्पर्श किया। किन्तु उस कृत्रिम अचेतन विशालाक्षीके कुछ भी उत्तर न देनेपर राजा