________________
mannannnnnnn.
NAAAAAAAAAAAnk
प्रथम अधिकार। अनुमति त्याग और उदिष्ट त्याग इन ग्यारह' प्रतिज्ञाओंका पालन करना चाहिए । अहिंसा अणुव्रत, सत्य अणुव्रत, अचौर्य अणुव्रत, ब्रह्मचर्य अणुव्रत, परिग्रह परिमाण अणुव्रत ये पांच प्रकारके अणुव्रत कहलाते हैं । श्रावकोंको उचित है कि इनका भी पालन करे।
दिग्व्रत, देशव्रत, और अनर्थदण्ड विरति व्रत ये तीन गुणव्रत हैं । श्रावकाचारको जाननेवाले श्रावक इन का उत्तम रीति से पालन करें। छः प्रकारके जीवोंपर कृपा करना, पंचेन्द्रियोंको वशमें करना एवं रौद्र ध्यान तथा आर्त ध्यानके त्याग कर देने को सामायिक कहते हैं । सामायिकका पालन नियमित रूपसे श्रावकोंके लिए अनिवार्य होता है । अष्टमो, चौदशके दिन प्रोषधोपवास अत्यन्त आवश्यक है। प्रोषधोपवासके भी तीन भेद माने गये हैं-उत्तम मध्यम और जघन्य । केसर चन्दन आदि पदार्थोके लेपनको भोग कहते हैं और वस्त्राभूषणादिको उपभोग। इन दोनोंकी संख्या नियत कर लेनी चाहिए। इसको भोगोपभोगपरिमाण व्रत कहते हैं। श्रावकोंके लिए यह भी आवश्यक है। शास्त्रदान, औपधिदान, अभयदान और आहारदान ये चार प्रकारके दान हैं। प्रत्येक गृहस्थको चाहिए कि वे अपनी शक्तिके अनुसार इन दानोंको गृही त्यागी मुनियोंको दे। चाय और आभ्यन्तरके भेदसे शुद्ध तपश्चरण दो प्रकारके होते हैं । इन्हें तत्व ज्ञानियोंको अपने कर्म नष्ट करनेके लिए उपभोगमें लाना चाहिए।' इस प्रकारके धर्मोपदेशको सुनकर महाराज श्रेणिकको