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योगके तीन भेद हैं यह जानना चाहिए ।। ४९ ।।
कुदकुद-भारती
असुहेदरभेदेण दु, एक्केक्कं वण्णिदं हवे दुविहं ।
आहारादी सण्णा, असुहमणं इदि विजाणेहि ।। ५० ।।
मन वचन काय इन तीनों योगोंमेंसे प्रत्येक योग अशुभ और शुभके भेदसे दो प्रकारका कहा गया । आहार आदि संज्ञाओंका होना अशुभ मन है ऐसा जानो ।। ५० ।।
किण्हादि तिणि लेस्सा, करणजसोक्खेसु सिद्धपरिणामो ।
ईसा विसादभावो, असुहमणं त्ति य जिणा वेंति । । ५१ । ।
कृष्णादि तीन लेश्याएँ, इंद्रियजन्य सुखोंमें तीव्र लालसा, ईर्ष्या तथा विषादभाव अशुभ मन है। ऐसा जिनेंद्रदेव जानते हैं । । ५१ ।।
रागो दोसो मोहो, हास्सादिणोकसायपरिणामो ।
थूलो वा सुमो वा असुहमणो त्ति य जिणा वेंति । । ५२ । ।
राग, द्वेष, मोह तथा हास्यादिक नोकषायरूप परिणाम चाहे स्थूल हों चाहे सूक्ष्म, अशुभ मन है ऐसा जिनेंद्रदेव जानते हैं। । ५२ ।।
भस्थित्थिरायचोरकहाओ वयणं वियाण असुहमिदि ।
बंधणछेदणमारणकिरिया सा असुहकायेत्ति ।। ५३ ।।
भक्तकथा, स्त्रीकथा, राजकथा और चोरकथा अशुभ वचन है ऐसा जानो। तथा बंधन, छेदन और मारणरूप जो क्रिया है वह अशुभ काय है ।। ५३ ।।
मोत्तूण असुहभावं, पुव्वत्तं णिरवसेसदो दव्वं ।
वदसमिदिसीलसंजमपरिणामं सुहमणं जाणे । । ५४॥
पहले कहे हुए अशुभ भाव तथा अशुभ द्रव्यको व्रत, समिति, शील और संयमरूप परिणामों का होना शुभ मन है ऐसा जानो । । ५४ ।।
संसारछेदकारणवयणं सुहवयणमिदि जिणुद्दिट्ठे ।
जिणदेवादिसु पूजा, सुहकायं त्ति य हवे चेट्ठा ।। ५५ ।।
जो वचन संसारका छेद करनेमें कारण है वह शुभ वचन है ऐसा जिनेंद्र भगवान् ने कहा है । तथा जिनेंद्रदेव आदिकी पूजारूप जो चेष्टा शरीरकी प्रवृत्ति है वह शुभकाय है । । ५५ ।।
जम्मुद्दे बहुदोसवीचिए दुःखजलचराकिण्णे ।
जीवस्स परिब्भमणं, कम्मासवकारणं होदि । । ५६ ।।
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