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________________ शारीरस्थान-अ०.५. . (७३१) तथा जन्मके न होनेमें एवम् गर्भके नाश होजानेमें और विकृत होजानेमें जो हेतु हैं उन गर्भविनाशक तीन प्रकारके अशुभ हेतुओंको वर्णन कियागया ॥ ६७ १६ शुभाशुभससाख्यातानष्टौभावानिमान्भषक् । सर्वथावेदयःसर्वान्सराज्ञःकर्तुमर्हति ॥ ६८ ॥ जो वैद्य इन शुभ और अशुभ आठमावोंको संपूर्णरूपसे जानलेताहै वही राजा ओंके चिकित्सा करने योग्य उत्तम वैद्य होताहै ॥ ६८ ॥ अवाप्युपायान्गर्भस्यसएवंज्ञातुमर्हति । येचगर्भविघातोक्ताभावास्तांश्चाप्युदारधीः॥६९ ॥ इतिचरकसंहितायांशारीरस्थानमहतीगर्भावक्रान्तिःशारीरंसमातम योग्य वैद्यको चाहिये कि गर्भक उत्पन्न करनेके उपाय तथा गर्भके उत्पन्न करने वाले भाव एवम् गर्भविघातक भाव इन सवको बुद्धिपूर्वक पूर्णरूपसे जानलेवे॥१९॥.. इति श्रीचरक० आ. वे० सं० शारीरस्थाने भाषाटीकायां महीगर्भावक्रांतिः शारीरं नाम चतुर्थोध्यायः ॥ ४ ॥ पञ्चमोऽध्यायः। अथातःपुरुषविचयंशारीरं व्याख्यास्याम इति हस्माह भगवानात्रेयः। अब हम पुरुषविचय शारीरकी व्याख्या करते हैं इसप्रकार भगवान् आत्रेयनी - कथन करनेलगे। पुरुषोऽयंलोकसम्मितइत्युवाचभगवान्पुनर्वसुरात्रेयायावन्तो हिमूर्तिमन्तोलोकभावविशेषास्तावन्तःपुरुषे यावन्तः पुरुष, तावन्तोलोके ॥१॥ यह पुरुष लोकसंमित अर्थात् जगत्के समान है। इसप्रकार भगवान् पुनर्वसु आत्रेयजी कथन करनेलगे।यह जिवना मूर्तिमान् लोकमें भावानिशेष है वह सवपुरुष, होताहै और जो पुरुषों है वह इस मूर्तिमान् जगत्में पायाजाताहै ॥ १॥ इत्येवंवादिनभगवन्तमात्रेयमग्निवेशउवाच । नैतावतावास्येनोकंवाक्यार्थमनगाहामहे । भगवताबुद्ध्याभूयस्तरमतोऽनुव्याख्यायमानशुश्रूषामहे ॥२॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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