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________________ चरक संहिता - भा० टी० । ... (६०० ) शास्त्रार्थ में प्रतिपक्षीको जीतने के लिय ये उपाय हैं। जैसे यदि वह शास्त्रमें होन हं तो उसके आगे वडे २ सूत्र और बहुतसा संस्कृतका पाठ उच्चारण करे। यदि वह विज्ञान शक्तिमें हीन हो तो कठिन शब्दों से उसको जीते। यदि उसमें वाक्य धारण करनेकी शक्ति न हो तो बंधेहुए संकुलीदार बहुत लम्बे २ दण्डकवाक्यों द्वारा शास्त्रार्थ करे। यदि वह तेजहीन और स्फुरणाहीन हो तो अनेक प्रकारसे अनेकार्थ शब्दों द्वारा पराजय करे । और वक्रताशक्तिहीनको उपरोक्त वाक्योंके आक्षेपद्वारा अर्थात् एक पंक्तिपर दूसरी पंक्ति बोलबोलकर मुग्ध वनादेवे । चातुर्य रहितको लज्जित करनेवाले वाक्योंद्वारा पराजित करे । यदि वह काधी हो तो उसके आगे इसप्रकार के कटाक्ष करे जिससे वह बोलना ही छोड देवे । डरनेवालेको शास्त्रीय धर्षणाद्वारा परास्त करे । असावधानको नियममें फंसाकर परास्त करे। इन उपायोंद्वारा प्रतिवादीको पराजय करनाचाहिये ॥ २० ॥ शास्त्रार्थ करते समय युक्तियुक्त वाक्योंको बोलना चाहिये अर्थात् अन्टसन्ट झूठा पक्ष न लेवे औरं प्रतिपक्षीके कहे हुए युक्तिसंगत सच्चे वाक्यको भी न माननेका झगडा न करे क्योंकि परस्पर जीतने की इच्छा से शास्त्रार्थ करते समय बहुत से पुरुषों के चित्तमें तीव्र द्रोह उत्पन्न हो जाता है। कोधित मनुष्य के लिये कुछ भी, अवाच्य और अकार्य नहीं होता अर्थात् क्रोधमें भरा हुआ मनुष्य जो कुछ आगे आये सो उचितानुचित वक देता है और लडाई आदि वृथा उपद्रव उत्पन्न होजाता है। इसलिये बुद्धिमान् मनुष्य कलहको अच्छा नहीं समझते क्योंकि कलह करना सज्जन पुरुषोंका काम नहीं है॥ २१ ॥ २२ ॥ एवंप्रवृत्तेतुवादेप्रागेववादात्तावदिदं कर्त्तयतेत । सन्धायपरिषदाऽयनभूतमात्मनः प्रकरणमादेशयितव्यम् । यद्वापरस्य भृशदुर्गस्यात् । पक्षमथवापरस्य भृशंविमखमानयेत् । परिषदिचोपसंहितायामशक्यमस्माभिर्वक्तुमितितूष्णीमासीदेषैव चते परिषद्यथेष्टंयथायोग्यंयथाभिप्रायंवा दंवादमर्य्यादाञ्चस्था • पयिष्यतीत्युक्ता ॥ २३ ॥ जब प्रतिवादीसे शास्त्रार्थ करनेके लिये प्रवृत्त हो तो शास्त्रार्थ करनेस प्रथम ही सभामें जो सभासद बैठे हों उनकी अनुमतिसे जिस विषयमें अपना अभ्यास और वल हो उस विषय में शास्त्रार्थ करना प्रारम्भ करना चाहिये अर्थात् सभासदोंकी. अनुमतिसे अपना पूर्वपक्ष करना चाहिये अथवा ऐसे पक्षको छेडे जो प्रतिवादीको अत्यन्त कठिन प्रतीत हो अथवा पूर्वपक्ष द्वारा प्रतिवादीको अत्यन्त विमुख बनादेवे जब देखे कि यह समासे विमुख है, अथवा सभा उससे विमुख हो तब सभामें ... :
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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