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________________ विमानस्थान-अ० ३. (५४१) उत्कट औषधियों का प्रयोग एवम् शीघ्रकारी औषधी आगे कथन कियेहुए रोगियों को नहीं देना चाहिये । ६४॥ अयोग्यरोमकि लक्षण । अनपवादप्रतीकारस्थाधनस्यापरिचारकस्यवैद्यमानिनश्चण्डस्या, सूयकस्यतीवाधर्मरुचेरतिक्षीणबलमांसशोणितस्यअसाध्यरोगोपहतस्यमुमूर्षुलिंगान्वितस्यचति । एवंविधंह्यातुरमुपचरभिषपापीयसाअयशसायोगंगच्छतीति ॥६५॥ जैसे-जिस रोगीको अपने अपयशका भय न हो, जो निर्धन हों,जिसकी कोई सेवा करनेवाला नं हो,जो अपने आपको वैध मान रहाहो,जो कठोर स्वभाववाला हो, जो निंदक हो, जो अत्यंत पापी हो, जो अतिक्षीण होगयाहो, जो स्वयम् मर; नेकी इच्छा रखता हो। इतने प्रकारके रोगियोंकी चिकित्सा करनेसे वैद्य पाण और अपयश अर्थात् बदनामीको प्राप्त होता है ॥ ६ ॥ तत्र श्लोकाः। अल्पोदकद्रुमोयस्तुप्रवातःप्रचुरातपः। ज्ञेयःसजाङ्गलादेश स्वल्परोगतमोऽपिच ॥६६॥ यहाँपर श्लोक हैं-जिन देशोंमें जल और वृक्ष थोडे होतेहैं,वायु बडे वेगसे चलती है, धूप अधिक पडती है उस देशको जांगल देश कहते हैं । ऐसे देशोंमें रोग बहुतकम होतेहैं ॥ ६६ ॥ प्रचुरोदकवृक्षोयोनियातोदुर्लभातपः। अरूपोऽबहुदोषश्चसमःसाधारणामतः ॥ ६७॥ . जिस देशमें जल और वृक्ष बहुत होते हैं, वायु और धूप बहुत कम लगती हैं उस देशको आनूप देश कहते हैं । इस देशमें रोग अधिक होतेहैं। जिस देशमें यह ' दोनों बातें सामान्य हों उसको साधारण देश कहते हैं ।। ६७ ॥ तदात्वेचानुबन्धोवायस्यस्यादशुभंफलम् । कर्मणस्तन्नकर्तव्यमेतद्बुद्धिमतांमतम् ॥ ६८॥ जिस कर्मके करनेसे उसी समय अथवा कुछ काल पाकर अशुभफल हो वह कर्म कभी भी न करना चाहिये । यह बुद्धिमानोंका मंतव्य है ॥ ६८॥ पूर्वरूपाणिसामान्याहेतवःस्वस्वलक्षणाः। देशोद्ध्वंसस्यभेष
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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