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अथ चरकसंहिता । भाषाटीकासहिता ।
सूत्रस्थान
प्रथम अध्याय १. मंगलाचरण |
यत्सेवया जडधियोऽपि हि तां प्रतिष्ठां गच्छन्ति यां न विबुधा अमितप्रयासैः ॥ तां वै प्रसादसुमुखीं गिरिराजकन्यां सर्वस्य चास्य जननीं हृदि भावयामि ॥ १ अथाहीशप्रणीतायाः संहितायाः प्रसादनी ॥ रामप्रसाद वैद्येन भाषा वै क्रियते मया ॥ २ ॥ दोहा - जाकी सेवा जडहु नर, लभहिं प्रतिष्ठा जोय ।
२ ॥
अतिप्रयास करि करि विबुध, पायस नहिं सोय ॥ १ ॥ सो प्रसन्नमुख गिरिसुता, जो सब जगकी माय । कारज रामप्रसादके, होवहु सदा सहाय ॥ चरकरचित या ग्रंथकी, भाषा लिखों बनाय | रामप्रसाद प्रसादनी, जो सबके मन भाय ॥ अथातो दीर्घजीवितमध्यायं व्याख्यास्याम इति ह स्माह
३ ॥
भगवानात्रेयः ॥
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भगवान् आत्रेय कहने लगे कि अब हम दीर्घजीवितीय अध्यायका विस्तारपूर्वक कथन करते हैं क्योंकि संसारमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चार पुरुषार्थोंकी प्राप्ति के लिये ही सत्पुरुषोंकी प्रवृत्ति होती है इन सब पुरुषार्थोंके साधनके लिय दीर्घजीवनकी आवश्यकता है वह दीर्घजीवन अरोगिता ( तंदुरुस्ती) रहने पर होसक्ती है अरोगिता रखने के लिये ही आयुर्वेदकी प्रवृत्ति है इसलिये अरोगिताको मुख्य रखते हुए प्रथम दीर्घजीवितीय अध्यायका कथन करतेहैं ॥ १ ॥