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सूत्रस्थान-अ० २७.
(३३९)
भव्यके गुण । . मधुरामलकषायञ्चविष्टम्भिगुरुशीतलम्। .
पित्तश्लेष्महरंभव्यंग्राहिवक्त्रविशोधनम् ॥१२५॥ : भव्यफल-मीठा, खट्टा, कसैला, विष्टम्भकर्ता, शीतल, भारी, पिचकफनाशक, संग्राही और मुखका शोधनकर्ता है ॥ १२५ ॥
. कच्चे फलोंके गुण।। अम्लंपरूषकंद्राक्षाबदाण्यारुकाणिच ।
पित्तश्लेष्मप्रकोपीणिकर्कन्धुलकुचान्यपि॥१२६॥ खट्टे फालसा, दाख, बेर,आड ,वनवेर,वडहर- यह सब पित्त, कफको कुपित करनेवाले होते हैं ॥ १२६ ॥
पके आरुकके गुण । नात्युष्णंगुरुसम्पर्कस्वादुप्रायमुखप्रियम् ।
बृहणंजीयतिक्षिप्रंनातिदोषठमारकम् ॥ १२७ ॥ पकाहुआ मीठा आडू. अधिक गर्म नहीं है,मीठा है, मुखको प्रिय है,पुष्टिकारक है,शीघ्र पचनेवाला है तथा दोषोंको अधिक कुपित करनेवाला नहीं है ।। १२७ ॥
पालेक्तके गुण । द्विविधशीतमुष्णश्चमधुरञ्चाम्लमेवच।
गुरुपालेवतंज्ञेयमरुच्यत्यग्निनाशनम् ॥ १२८ ॥ पारावतफल-शीतल और उष्ण दो प्रकारका होताहै । जो मीठा होताहै वह शीतल है और खट्टा उष्ण होता है । यह दोनों प्रकारके अरुचि तथा भस्मका निको नष्ट करनेवाले हैं ।। १२८ ॥
खम्भारी-तूद। भव्यादल्पान्तरगुणकाश्मर्यफलमुच्यते ।
तथैवाल्पान्तरगुणन्तुदमम्लंपरूषकम् ॥ १२९॥ काश्मरी (कंभारी) फल-भव्यफलसे गुणोंमें किंचित् न्यून होताहै एवम् खटा शहतूत फालसेसे गुणोंमें न्यून होताहै ॥ १२९ ॥
टङ्कके गुण । . . कषायमधुरंटतवातलं गुरुशीतलम् । कपित्यविषकण्ठनमा- .