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सूत्रस्थान-अ० २७. पाठा, ऊषा, साठी, सनिषण्ण (चौपतिया शाक) यह सब शाक ग्राही तथा त्रिदोषनाशक हैं और बथुवका शाक मलवेधक और त्रिदोषनाशक होताहै ॥८६॥
__मकोयके शाकका गुण। त्रिदोषशमनीवृष्याकाकमाचीरसायनी।
नात्युष्णशीतवीर्याचभेदनीकुष्ठनाशिनी॥ काकमाची (मकोय ) का शाक त्रिदोषको शान्त करनवाला, वायवद्ध क,रसायन, वीर्यमें न बहुत गर्म और न बहुत शीतल,मलवेधक एवम् कुष्ठनाशक होताहै८७.
राजक्षवकके गुण । राजक्षवकशाकन्तुत्रिदोषशमनलघु।
ग्राहिशस्तंविशेषेणग्रहण्यशोविकारिणाम् ॥ ८८॥ राजक्षवक, जीवक, सौं, दुग्धिकाका शाक त्रिदोषको शान्त करनेवाला हलका विशेषकर संग्रहणी और अर्शरोगमें हितकारी है ॥ ८८ ॥
कालशाक करालशाक। कालशाकन्तुकटुकंदीपनंगरशोफजित् ।
लघूष्णवातलंरक्षंकरालंशाकमुच्यते ॥ ८९॥ कालशाक (नाडीका शाक)--कटु, दीपन,विषविकार तथा सूजनको नष्ट करने वाला होताह । करालशाक ( काली तुलसीका शाक ) हलका, उष्ण, वातकारक. तथा रूक्ष होताहै ॥ ८९ ॥
चांगेरीके गुण । दीपनीचोष्णवीर्याचग्राहिणीकफमारुते।
प्रशस्यतेऽम्लचाङ्गेरीग्रहण्यशोहिताचसा ॥ ९०॥ अम्लचांगेरी (चूका) का शाक अग्निदीपन,उष्णवीर्य, ग्राही तथा कफ और वायुके रोगोंमें, ग्रहणीमें एवम् अर्शरोगमें हितकारी होताहै ॥९॥
पोईका शाक। मधुरामधुरापाकभेदनीश्लेष्मवर्द्धिनी।
वृष्यास्निग्धाचशीताचमदनीचाप्युपोदका ॥ ९१॥ उपोदकी (पोई ) का शाक मधुर, पाकमें भी मधुर, मलवेधक, कफवर्धक,. वृष्य, स्निग्ध, शीतल एवम् मदविनाशक होताहै ॥ ९१ ॥