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________________ भूमिका। (७) योग्य मनुष्योंका सीखनमें यत्न न करना ३।आयुर्वेदीय औषधिसंग्रह आदि नियम न रखकर दुकानोंकी पुरानी गली, सडी औषधियोंसे चिकित्सा करना ४ । यदि आयुर्वेदीय शिक्षाका यथोचित प्रबन्ध होजाय तो फिर भी आयुर्वेद उसी उन्नत अव: स्थामें पहुंच सकताहै। उन्नतिके लिये कुछ वाहरसे लानेकी आवश्यकतानहीं। उन्हीं पुराने ऋषिप्रणीत संहिताओंकी सर्वांग शिक्षाका प्रबन्ध होजाय तो सब कुछ हौसकताहै। चरक, सुश्रुत माद ग्रन्थोंसे ऐसा कौन विषय बचा है जो स्थूल वा सूक्ष्मरूप इनके भीतर न भराहो। विचारशील महाशयगण, जरा विचार करें कि, पहलेके आत वैद्य किसप्रकारसे औषधोंको सिद्ध करतथे और निदानज्ञानपूर्वककैसी उत्तम रीतिसे औषधप्रयोग करतेथे जिससे वे पीयूषपाणि कहे जातेथे और रोगी निस्सन्देह नीरोग होतेथे। परन्तु आजकलके बहुतसे चिकित्सकनामधारी महाशय तो इन सब आयुः वेदयि क्रियाओंको छोडकर आलस्यग्रस्त हो अमृतसागर भाषा पढपढ कर अण्ट. सण्ट संस्कृत असंस्कृत जैसे तैसे गोलिये बना मयनेको रसवैद्य-देववैद्य होताहै ऐसा .माननेलगे। ऐसे वैद्य ऐसी रस गोलियोंको पास रख रोगीको, देखकर निदान कहने और रोगानुसार चिकित्सा करनेकी कठिनवासे निरन्तर बचे रहतेहैं और इसी कारण इनकी योग्यताकी पोल भी नहीं खुलनेपाती परन्तु इनकी कृपासे आयुर्वेदीय . असली क्रिया नष्ट होकर भागेको प्रायः निर्मूल होतीजातीहै और इनकी उन गोलि.. योंके खानेसे क्या होताहै इसे तो खानेवाले या उनके परिवारके लोग या ईश्वरही . बहुतसे लोगोंको चरक, सुश्रुत आदि ग्रन्योंका रहस्य जानने और इनके अनु. सार क्रिया करनेका उत्साह भी होता है तो यह विचारे "चरक" जैसे सर्व युक्तिसंपन्न ग्रन्थको किस से पढे! । यद्यपि इस ग्रंथकी भोजवृत्ति और वाचस्पतिकी टीका संपूर्ण नहीं मिलती वथापि चक्रपाणिकृत संस्कृतटीका तथा गंगाधर शास्त्री कृत संस्कृतटीका (पुरानी) संपूर्ण मिलतीहै। जिससे इस ग्रन्थकी योग्यतासे विद्वान् लोगोंको लाभ उठाना कठिन नहीं परन्तु केवल भाषामात्र जाननेवालोंको “चरकका" भाव जाननेके लिये भाषाटीकाको छोड और कोई उपाय नहीं । यद्यपि
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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