SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१९८) चरकसंहिता-भा० टी । पित्तके क्षय होनेपर फफ-वायुसे मिलकर विचरताहुया स्तंभ, शीतता, तोद, गुरुता, मंदाग्नि, अन्नसे द्वेष, कंप, नखादिकोंमें श्वेतता तथा देहमें कठोरता करताहै ॥ १२ ॥५३॥ हीनेकफेमारुतस्तुपित्तंतुकुपितंद्वयम्। करोतियानिलिङ्गानिशणुतानिसमासतः ॥५४॥भ्रममुद्वेष्टनन्तोदंदाहंस्फोटनवेपनम् । अङ्गमर्दपरीशोषहृदयेधूपनंतथा ॥५५॥ . कफके क्षय होनेपर वायु और पित्तोंके मिलकर जो चिह्न होते हैं उनको भी संक्षे. बसें सनो । वह यह हैं-भ्रम, उद्वेष्टन, तोद, दाह,हड्डियोंका स्फोटन,कंपन,अंगमर्द, देहका शोष, हृदयमें धूवांसा उठना ॥५४ ॥५५॥ वातपित्तक्षयेश्लेष्मास्त्रोतांस्यभिधशम् । चेष्टाप्रणाशंमूछीञ्चवाक्सगचकरोतिहि ॥ ५६ ॥ वात पित्तके क्षय होनेपर कफ स्रोतोंको अच्छीतरहसे रोककर चेष्टांका नाश, मूळ, और वाणीका अवरोध करताहै ॥ ५६ ॥ श्लेग्मवातक्षयेपित्तंदेहौजःस्रंसयेद्यदा। ग्लानिमिन्द्रियदौर्बल्यंतृष्णांमच्छक्रियाक्षयम् ॥ ५७ ॥ वात और कफके क्षय होने पर पित्त देहके ओजको विगाडकर ग्लानि, इंद्रिः । योंकी दुर्वलता, तृषा, मुर्छा और देहकी क्रियाका नाश करताहै ॥ १७ ॥ पित्तश्लेष्मक्षयवायुर्मर्माण्यातीनपीडयन् । प्रणाशयतिसंज्ञांचवेपयत्यथवानरम् ॥ ५८॥ जब पित्त और कफ क्षीण होजाते हैं तो वायु मर्मस्थानोंको पीडित करता हुआ संज्ञाका नाश करताहै अथवा कंप पैदा करताहै ॥ ५८ ॥ दोपाःप्रवृद्धाःस्वंलिड्दर्शयन्तियथावलम् । क्षीणाजहतिलिस्वंसमाःसङ्कमकुर्वते ॥ ५९॥ जब दोप वढ जातेहैं तो अपने २ लक्षणांको दिखातेहें। ऐसे ही क्षीण हुए दोष अपने चिदाको त्यागदेतेहैं । और साम्यावस्थाम स्थितंहुए दोष अपने योग्य कार्य करतेहैं ॥ ५९॥ वातादीनांरसादीनांमलानामोजसस्तथा ॥ क्षयस्तत्रानिलादीनामुक्तंसंक्षीणलक्षणम् ॥ ६॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy