SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्रस्थान-अ० १७. (१९७) ... यदानिलंप्रकृतिगंपित्तकफपरिक्षये। : . . . संरुणद्धितदादाहःशूलंचास्योपजायते ॥४५॥ ... ' कफके क्षय होनेसे प्रकृतिस्थ वायुके सूक्ष्म मार्गोंको जब पित्त रोकदेताहै तो इस 'मनुष्यके शरीरमें दाह और शूल होतेहैं ॥ ४२ ॥ __ श्लेष्माणहिसमंपियदावातपरिक्षये ॥ निपीडयेत्तदाकुर्यात्सतन्द्रागौरवंज्वरम् ॥ ४६ ॥ वायुके क्षय होनेपर प्रकृतिस्थ कफकी गतिको जव रोकदेताहै तब तन्द्रा, भारी: पन और ज्वर इनको उत्पन्न करताहै ॥ ४६ ॥ प्रवृद्धोहियदाश्लेष्मापित्तेक्षीणेसमीरणम् । रुन्ध्याचदाप्रकुर्वीतशीतकंगौरवंज्वरम् ॥ ४७॥ पित्तकी क्षीणतामें प्रकृतिस्थ वायुको जब कफ रोकदेताहै तब शीत लगना गौरव और ज्वर यह होतेहैं ।। ४७ ॥ समीरणेपरिक्षीणेकफपित्तंसमत्वगम् । कुर्वीतसन्निरुन्धानो: . मृदाग्नित्वंशिरोग्रहम् ॥४८॥ निद्रांतन्द्रांप्रलापञ्चहृद्रोगंगात्र. गौरवम् । नखादीनाञ्चपीतत्वंष्ठीवनंकफपित्तयोः ॥४९॥ वायुके क्षय होनेपर यदि प्रकृतिस्थ पित्तको कफ रोकदेवे तो मंदाग्नि, शिरमें . पीडा, निद्रा, तन्द्रा, वकवाद, हृद्रोग, गौरव, नख नेत्र मूत्रमें पीलापन कफ और पित्तका मुखस थूकना यह लक्षण होतेहैं ॥४८॥ ४९ ॥ हीनवातस्यतकफपित्तेनसहितश्चरन् । करोत्यरोचकापाकौसदनंगौरवंतथा ॥५०॥ हृल्लासमास्यस्त्रवणयनंपाण्डुतांमदम् । विरेकस्यहिवैषम्यवैषम्यमनलस्यच ॥ ५१ ॥ जिस मनुष्यके शरीरमें वायुकी क्षीणता हो उसके शरीरमें कफ पित्तसे मिलकर '' विचरती हुई अरुचि, अंपाक, देहका रहनाना, गुरुता, हृल्लास, मुखस्राव, पांडु, वेदना, मद, मलकी विषमता और जठराग्निकी विषमताको करतीहै ॥ ५० ॥५१॥ क्षीणपित्तस्यतुश्लेष्मामारुतेनोपसंहितः। स्तम्भशैत्यंचतोदञ्चजनयत्यनवस्थितम् ॥ ५२॥ गौरवंमृदुतामग्नेभक्ताश्रद्धां प्रवेपनम् । नखादीनाञ्चशुक्लत्वंगात्रपारुष्यमेवच ॥ ५३ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy