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________________ (१६६) चरकसंहिता-भा० टी०। रोगीको वातनाशक तेलादिकांसे स्निग्धकर ऊपर वस्त्र देकर फिर वातनाशक द्रव्यांक मूल, फल. शुगादिकोंके मुखोप्ण काथको किसी तूतनीदार लोटेमें भरकर वस्त्रबेष्टित स्निग्धगात्र रोगी पर सींच देना । इसको परिषेक स्वेद कहते हैं ॥४२॥ अवगाहका लक्षण । वातहरोत्वाथक्षीरतलघृतपिशितरसोष्णसलिलकोष्ठकावनाहस्तुयथोक्तएवावगाहः ॥४३॥ एक खुले पात्रमें वातनाशक औषधियांका काथ या दूध, तेल, घी, मांसरस, अथवा गर्म जल भरकर उसमें बैठना । उसको अवगाहन स्वेद कहते हैं ॥४३॥ जेन्ताकस्वेदके लिये भूमिपरीक्षा। अथजेन्ताकंचिकीर्षुभूमिपरीक्षेत । तत्रपूर्वस्यादिश्युत्तरस्यांवा गुणवतिप्रशस्तभूमिभागेकृष्णमत्तिकेसुवर्णमृत्तिकेवापरीवापपुष्करिण्यादीनांजलाशयानामन्यतमस्यकूलेदक्षिणेपश्चिमेवा सूपतीर्थसमसुविभक्तभूमिभागेसप्ताष्टौवाअरत्नीमुपक्रम्योदकाप्राङ्मुखमुदङ्मुखंवाभिमुखतीर्थकूटागारंकारयेत् ॥४४॥ जैताकस्वेद करनेकी इच्छावाला मनुष्य पहले भूमिकी परीक्षा करे । रोगीके - स्थानसे पूर्व अथवा उत्तर दिशाम गुणयुक्त पवित्र भूमि देखकर जहां काली या पीली, मधुर, उत्तम मिट्टी हो और जिस भूमिके समीप ही नदी, वापी, पुष्करणी आदि कोई जलाशय हो उस जलाशयके दक्षिण या पश्चिमके किनारे दूसरा तीर्थ हो वहां पवित्र सीधी उत्तम भूमिमें जलाशयसे सात आठ हाथ पर एक मकान ऐसा बनावे जिसका मुख जलाशयकी ओर हो ॥ ४४ ॥ उत्सेधविस्तारतःपरमरत्नीहिपोडशसमन्तात्सुवृत्तंमृत्कर्मसम्पन्नमनेकवातायनमाअस्यकटागारस्यान्तःसमन्ततोभित्तिमरत्नीविस्तारोत्सेधांपिंडिकांकारयेत्कपाटवर्जम् ।मध्येचास्यकटागारस्यचतुष्किकुमात्रपुरुपप्रमाणं मृण्मयंकन्दुसंस्थानंवहुसक्ष्मच्छिद्रमङ्गारकोप्टकान्तंसपिधानंकारयेत् ॥ ४५॥ और वह मकान लंबा चीडा ऊंचा परिमाणसे चारों ओर सोलह हाथ होना चाहिये यह घर मृत्तिकाले वनाहुआ और जिसमें हवा आनेको कई जगह खिडकी रखीहुई हा इस मकान भीतर चागं ओर दीवाग्म एक २ हाथकी भीत वनावे और उनमें किवाटे न लगाये। फिर मकान टीक बीचमं एक चार हायका चौडा और सात हाय लंबा भाट सा बनाले उसके उपर वारीक २ छिद्रायुक्त ढकना रवखे ॥१५॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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