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सूत्रस्थान-अ० १४.
(१६५७ नाडीस्वेदका लक्षण। स्वेदनद्रव्याणांपुनर्मूलफलपत्रशुङ्गादीनां मृगशकुनापिशिताशरम्पादादीनामुष्णस्वभावानांकायथाहमम्ललवणस्नेहोपसंहितानांमूत्रक्षीरादीनांवाकुम्भ्यांबाष्पमनुद्वमत्यामुत्कथितानांनाड्याशिरेषीकावंशदलकरञ्जार्कपत्रान्यतमरुतयागजाग्रहस्तसंस्थानयाव्यामदीर्घयाव्यामार्द्धदीर्घयावाव्यामचतुर्भागाष्टभागमूलाग्रपरिणाहस्रोतसासर्वतोवातहरपत्रसंवृत्ताच्छिद्रयाद्विस्त्रिाविनामितयावातहरसिद्धस्नेहाभ्यक्तगात्रोबाष्पमपहरेत् । बाष्पोनूद्धगामीविहलचण्डवेगस्त्वचमविदहनुसुखंस्वेदयतीतिनाडीवेदः॥४१॥ स्वेदनके द्रव्योंके-जड; पत्र, फल, शुंग, आदि लेकर और उष्णस्वभाववाले मृग, पक्षी आदिकोंके मांस. शिर, पाद आदि लेकर और यथोचित अम्ल,लवण, - स्नेह, मिलाकर तथा मूत्र, दूध, जल आदि किसी पात्रमें डालकर उसीमें उपरोक्त
औषधियें डालकर पकांव और उस पात्रका मुख बंद करके उसमें एक नाल लगावें उसमेंसे जो भाफ आवे उससे रोगी स्वेदन करे । इस नालको सरपते, नरसल,बांस, करंज; आँक इनमेंसे किसीके पत्रोंसे या अन्य उचित द्रव्यसे बनावे । यह हाथीकी सूंडके अग्रभागके समान मोटी और दोनों बाहोंको फैलानेसे जितना लंबा होताहै उतनी लंबी होनी चाहिये । या एक गज लंबी हो और पात्रके मुखपरसे आधिक खुला और आगेसे छोटा ऐसाउस नालमें छिद्र होना चाहिये । वातनाशक पत्रोंसे नालके सब स्रोत बंद होने चाहिये जिससे भाफ बाहर न निकले । इस नालको दो तीन जगहसे नवाकर भाफ देनी चाहिये । भाफ देनेसे पहले ही वातनाशक तेलोंकी मालिशसे रोगीका शरीर नम्र रखना चाहिये । भाफको रोगीके शरीरमें छोडते समय नालका मुख तिरछा रक्खे जिससे भाफ रोगीकी छालको दहन न करे क्योंकि सीधी भाफ अत्यंत गर्म लगतीहै । इसको नाडी स्वेद कहतेहैं ॥४१॥
परिषेकका लक्षण । .. वातिकोत्तरवातिकानांपुनर्मूलादीनामुत्वाथैःसुखोष्णैःकुम्भी
वाघुलिका प्रनाडीर्वापूरयित्वायथाहसिद्धस्नेहाभ्यक्तगात्रंव- .. ..स्त्रावच्छन्नंपरिषेचयेदितिपरिषेकः ॥ ४२ ॥