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ममृभाषानुवाद
भोजन लाकर दिनमें किया करें तो अच्छा हो । जबतक काल अच्छा न आवै तबतक इसी तरह कीजिये । और जब काल अच्छा आजाय, देश में सुभिक्ष होने लगे तब तपश्चरण करिये। उस समय समस्त साधुओंने श्रावकों के चचनोंको स्वीकार किये। इसीतरह वे साधु धीर २ शिथिल होकर व्रतादिमें दोप लगाने लगे । ग्रन्थकार कहते हैं यह बात ठीक है कि -कुमार्गगामी लोग क्या २ अकार्य नहि करते हैं ।
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इसप्रकार अत्यन्त दुःख पूर्वक जब बारह वर्ष बीत चुकै, अच्छी वर्षा होने लगी, लोग सुखी होने लगे तथा दशमें सुभिक्ष होने लगा तो विशाखाचार्य सब सुनियोंको साथ लेकर दक्षिण देशसे उत्तर देशकी ओर आये | और जहां श्रीभद्रबाहु आचार्यने समाधि ली श्री वहीं आकर ठहरे तथा विनय पूर्वक श्रीभद्रबाहु गुरु पदपङ्कजको प्रणाम किया | पश्चात् श्रीचन्द्रगुप्ति मुनिरा
भर्फ समानीय पाखरे कुरुनाशनम्। यावदर्शनः सन्नम्॥८१॥ कमला पुनस्तद
॥ ८३ ॥ व्याचरन्तस्ते प्रापुः तु शनैः शनैः । किन कुर्युः कदम्याः || ८४ इथं तु द्वादशादेषु
मौर्य ममिवं ममजावत ॥ ८५ अधाशयोजन शिवां
उत्तरापथम
गुन
गुन देवियाविनः ॥ ८ ॥ चन्द्रादिः