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समूळमापानुवाद । पृथ्वी मण्डलको मुग्ध करने वाला भद्रबाहु शिशु, कुमारअवस्थाको प्राप्त होकर देवकुमारोंके समान शोभने लगा ॥५१॥कला विज्ञानमें कुशल भद्रबाहु अपने समान आयुके धारक और २ कुमारोंके साथ आनन्द पूर्वक खेलता रहता था ॥५२॥ सो किसी समय यह कुमार जब अपने नगरके वाहिर और २ कुमारोंके साथ खेलता था उससमय इसने अपनी कुशलतासे एकके ऊपर एक इसतरह क्रमशः तेरह गोली चढादी और शीघही उनके ऊपर चतुर्दसमी गोलीभी चढादी ॥५३॥५४॥
जिसप्रकार चन्द्रमा ताराओंसे विभूषित होताहै, उसीप्रकार मुनि मण्डलसे विराजित, अनेक प्रकार गुणों से युक्त, अपने उत्तम ज्ञान रूप शशिकिरण-सन्दोहसे सर्व दिशायें निर्मल करने वाले तथा शोभायमान चारित्र रूप सुन्दर आभूषणसे शोभित श्रीगोवर्द्धनाचार्य गिरनार पर्वतमें श्रीनेमिनाथ भगवानकी यात्राकी अभिलापासे विहार करते हुये कोट्टपुरमें आनिकले ॥ ५५ ॥ ५७ ।। रतागाप्य रेजेऽनकुमारवत् ॥ ५॥ भद्रबाहुकमारोऽसा सवयोमिरमा ना! कलाविज्ञानपारीणी रममाणोवतिटने । ५१॥ एकदा दिव्यता सेन कुमारडुभिः समम् । दिव्यकोचरस्यान्ते स्वेच्छया याकरलम् ॥५१॥ एककोपरि पिन्यास्ता पाकास्त्र प्रयोदश । स्वकाशल्याहस तेषु निपपात चतुर्दा ॥ ५४ ॥ तदा गुणगः पूणे गोवद्धनगणाधिपः । माण्डितो मुनिमण्डल्या विधुस्तारगरिय ॥ ५५ ॥ विमलीकृतविश्वासः सोधेन्दुकरोवरः । पासपुचारिनचंचमाविभूयणः ॥५६॥ विको नमिताशयात्रा खतकाचले । विहल्कापि पूतात्मा कोपरमवाप सरा