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सगूलभाषानुवाद
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जिसका अवतार स्वर्ग समान मनोहर कोटपुरमें हुआ है, जो शोमशर्म तथा श्रीमती सोमश्रका अनेक गुणोंका धारक पुत्र ग्न है, जिसने गांवई नाचार्य सरी महात्माका आश्रय लेकर निर्मलज्ञान रूपी वाकर तिर लिया है वे श्रीभद्रबाहु महर्षि मेरे हृदय में प्रकाश करें।
जो स्नेह (राग) का नाश कर देनसे यद्यपि आभरणादिसे विरहित हैं तौभी बहुत ही सुन्दर है, जो वेद्यनीय कर्म के अभाव हो जानेसे यद्यपि निराहार है तौभी निरन्तर सन्तुष्ट है, जो काम रूप प्रचण्ड हाथीका नाश करने के लिये केशरी गिना जाता है और जो इन्द्रिय रूप काननके जलानेके लिये चह्नि कहा जाता है उसी जिनराजकी मैं सप्रेम स्तुति करता हूं वह इसी - लिये कि वे मुझे मनोमिलपित सुख वितीर्ण करें ।
यः श्रीकोटपुरे दितामरपुरे मामादादरः मोमश्रियां गदाम | मनपरि महा॥१॥
नाम: -
महाम
निदे
G
Arata