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ममूलमापानुवाद
कदाचित्कहो कि - निश्रयनवते न्त्री और पुरुषांक आत्मामें कुछ भी विशेषता न होनेसे उसी भव त्रियों को मोक्षकी समुपलब्धि क्यों नहीं होती ! परन्तु यदि केवल तुम्हारे कथनानुसार सब जीवांके नामान्य होने ही से स्त्रियोंको मोक्षकी प्राप्ति मानली जाये तो चाण्डाली तथा घीवरी आदिकी स्त्रिये क्योंकर मोक्षमें नहीं जातीं ? क्योंकि ये भी तो स्त्रियं ही हैं न १ तथा स्त्रियों के योनिस्थान में प्रवादिसे निरन्तर अशुद्धता घनी रहती है और महीने २ में निंद्यनीय रजोधर्म होता रहता है। स्तन कुक्षि तथा योनि आदि स्थानोंमें शरीर स्वभाव से ही सूक्ष्म अपर्याप्त मनुष्य उत्पन्न होते रहते हैं। स्त्रियोंकी प्रकृति (स्वभाव) बुरी होती है । लिङ्ग अत्यन्तही निन्दित होता है उनके साक्षात्संयय ( महाव्रत) भी नहीं हो सकता तो मोक्ष तो बहुत हैं । दूसरे स्त्रीलिङ्ग तथा स्तनोंसे युक्त स्त्री रूपमें बनी हुई तीर्थकरों की प्रतिमायें कहीं हो तो कहो ! इन
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नूनं तपः दी || ८४ ॥ तुन नि मोक्षायामिनुं नारीणां का
श्रीरामसः । मानवाः मिनि
योनिमा
न॥८८॥
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