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________________ समूलभाषानुवाद भी व्यभिचार आता है। क्योंकि एकेन्द्री जीवोंके लेप आहारका संमत्र है, देवताओंके मानसाहार होता है आर पक्षियोंके उजाआहार होता है । यही बात दूसरे अन्यों में भी लिखी है..___ * केवली भगवानके नोकर्म आहार होता है, नारकियोंके कर्म आहार होता है, देवताओंके मानस आहार होता है, पक्षियोंक ऊजाआहार होता है तथा एकेन्द्रियोंके लेप आहार होता है ।। इसलिये स्वप्नमें भी बुद्धिमानोंको केवली भगवानके लिये कवलाहारकी कल्पना करना योग्य नहीं है। अथवा दूससे यह भी बात है कि उनके आहाकी भी कल्पना केवल वेदनीय कर्मके सद्भाव होनेसे मानी जाती है ॥७२-७८|| अस्तु वह रहै परंतु यह तो कहो कि-जब केवन्द्री भगवान सर्व लोकालोकके देखने जानने वाले हैं तो संसारमें नाना प्रकारके जीवोंका बध देखते हुये कैसे भोजन कर सकते हैं: अथवा जिन भगवान भी अल्पज्ञानी लोगोंकी तरहशुद्ध तथा अशुद्ध भोजन करेंगे क्या और यदि अन्तरायो होते हुये भी भोजन करेंगे तो केवली भगशनके श्रावको यमिवारिता एमक्षenile River दार उजम प y aven साम्य | A finger rriris मागअमरेपलानाshritainsti मागा ." निना पसन्जE THE AREETTE ।
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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