SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 9 ) वेताम्बर लोग कहते हैं फि— दिगम्बरस्तावत् — श्रीवीरनिर्वाणानवोचरपट्शतवर्षातिक्रमे शिवभू व्यपरनान्न:- सहस्रमछतः सश्चातः-यथा—छन्वाससयाई नवुत्तराई तईयासिद्धि गयरस वीरस्स । तो पोडिभाण दिट्ठी रहवीरपुरे समुप्पण्णा || (प्रवचनपरीक्षा भावार्थ - श्रीवरिनायके मुक्ति जानेके ६३९ वर्ष बाद रथवीर पुरमें शिवमूर्ति (सहस्रम) से दिगम्बरोकी उत्पत्ति हुई है। इसका हेतु यों कहा जाता है “रहवीरेत्याद्यार्यान्त्रयाणायमर्थ: तात्पर्य यह है कि-रथवीर पुरमें एक शिवभूति रहता था । उसकी श्री अपनी सासुके साथ लड़ा करती थी । उसका कहना था कि-- तुम्हारा पुत्र रात्रिके समय बाहर २ बजे सोनेके लिये आता है सो मैं कब तक जगा करूं। शिवभूतिकी माताने इसके उत्तर में कहा कि आज तूं. सोला और मैं जागती हूं। बाद यही हुआ भी। शिवभूति सदाके अनुसार आज भी उसी समय घर आये और कवांड़ खोलनेके लिये कहा तो भीतरसे उत्तर मिला कि इस समय जहां दरवाजा खुला हो वहीं पर चले जाओ * । शिवभूति माता की भर्त्सनासे चल दिये । घूमते हुये उन्हें एक साधुओंका उपाश्रय खुला हुआ दीखं पड़ा । शिवभूतिने भीतर जाकर साधुओंसे प्रवृजाकी अभ्यर्थना की । परन्तु साधुओं को उनकी अभ्यर्थना स्वीकृत नहीं हुई । तब निरुपाय होकर वे स्वयं प्रवृजित हो गये। फिर साधुओंकी भी कृपा होगई यो उन्होंने शिवभूविको अपने शामिल कर लिया । बाद साधु लोग वहांसे बिहार करगये । 1 - क्यों पाठकों । आपने भी यह बात कभी सुनी है कि जरासे जीके कहने में खाकर माता अपने हृदय टुक्रेको अपनेसे जुदा कर सकती है ? जिसके विषय मे यहां तक कहावत प्रसिद्ध है कि " पुत्र चाहे पुत्र भले ही होगा परन्तु माता कभी कुमाता नहीं होती " तो यह कल्पना कहां तक ठीक है ! बुद्धिमानोंको विचारना चाहिये । शिवभूतिको उस समय दीक्षा क्यों नहीं दी गई ? और जब इन्कार ही था हो फिर क्यों दीगई कुछ विशेष हेतु होना चाहिये ।
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy