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शत्रुंजय उपर जई कपर्दी यक्षनुं पूजन करीने भगवान आदिनाथनो महामहोत्सव कर्यो हतो एम कहे छे.१ तेमां वसंतविलास प्रमाणे पादलिप्तपुरनी हकीकत जोवामां आवती नथी. आथी पण उदयप्रभ अने अरिसिंहनां यात्रावर्णनो एक ज संघना विवेचनो होवानुं स्पष्ट जणाय छे. मंत्रीश्वरे अहीं विविधप्रकारी स्नात्रमहोत्सव भव्य रीते कर्यो हतो तेनुं रसिक वर्णन धर्माभ्युदयकारे अहीं त्रण श्लोकोमां विस्तार वडे रच्युं छे. ते दानवीरे त्यां अनेक प्रकारे दानधर्मो अने पूजामहोत्सवो रच्या हता. संघ आठ दिवस रह्यो त्यां सुधी अष्टाह्निका महोत्सव भारे दबदबा साथे कर्यो. आदिनाथ भगवानना मंदिरपासे नृत्य गान करवा माटे मंत्रिवरे इन्द्रमंडप बंधाव्यो हतो तेनी नोंध वसंतविलासमां पण लेवाई छे. २ अनन्यभक्ति वडे जिनेशना पूजन, अर्चन करी वस्तुपाळे संघ सह पर्वत उपरथी अवरोहण करी अजाहरा (अजारा) तरफ प्रयाण आदर्यु. त्यांना अजयपाल नृपतिए संघनो सुंदर सत्कार कर्यो अने ते राजवीथी वंद्यमान त्यांना पार्श्वप्रभुनुं पूजन करी संघ कोडीनार गयो एम उदयप्रभसूरिए जणाव्युं छे. ३ ज्यारे वसंतविलासना कर्ता संघने शत्रुंजयथी एकदम प्रभासमां लावे छे. जे के उदयप्रभनुं संघयात्रावर्णन वसंतविलासना करतां टुंकामां छे पण तेमां जे हकीकतो नोंधाई छे ते प्रामाणिकतानी पराकाष्ठा रजु करे छे, तेटलुं ज नहीं पण केटलीक नक्कर हकीकतो पूरी पाडे छे. कोडीनारथी संघ देवपाटण (प्रभास) गयो त्यां इन्द्रादिदेवोथी संस्तूयमान ( स्तवन कराएला) अमृतांशुलांछनवाळा कालारि भगवान पिनाकपाणि सोमनाथ महादेवनुं वस्तुपाळे सारी रीते यजन कर्यु. सर्व धरम उपर सहिष्णुभाववाळा अने वाडाबंधीना मिथ्याभेदोने नहीं माननारा ते महानुभावे जिनेशना यात्रा मार्गमां आवनार सोमनाथ भगवाननुं विना संकोचे यजन करी जैन अने जैनेतरोने सांप्रदायिक असहिष्णु मानसनो त्याग करवा आदर्श दृष्टांत रजु कर्युं. ते ज हकीकत सुकृतसंकीर्तनमां पण आपी छे. वसंतविलासना कर्ता वधुमां अहीं वस्तुपाळे प्रियमेलक तीर्थमां स्नान करी सुवर्ण अने जवाहीरनां दानो ब्राह्मणोने आप्यां हतां तेम ज चंद्रप्रभप्रभुनुं पूर्ण भक्ति वडे यजन कर्तुं हतुं एटली नवीन हकीकत मूके छे. आ हकीकत बीजा कोई यात्रावर्णन करनार ग्रंथकारे लीधी नथी. आथी पण वसंतविलासमां आलेखाएल यात्रावर्णन धर्माभ्युदय वगेरे ग्रन्थमां जणावेली यात्रा करतां बीजी यात्रानुं होवानुं सूचवे छे.
१. सुकृतसंकीर्तन, श्लोक १२थी ४२.
२. प्रेक्षणक्षणमथो विचक्षणस्तीर्थभर्तुरयमग्रतो व्यधात् ।
नर्तकीकुचतटत्रुटन्मणिस्रग्मणिप्रकरपुञ्जितावनी ॥८४॥ - वसन्तविलास महाकाव्य, सर्ग १०.
३. अजाहराख्ये नगरे च पार्श्वपादानजापालनृपालपूज्यान् ।
अभ्यर्चयन्नेष पुरे च कोडीनारे स्फुरत्कीर्तिकदम्बमम्बाम् ॥१२॥ - धर्माभ्युदयमकाहाव्य, सर्ग १५.
४. वसंतविलास काव्य, सर्ग ११, श्लोक ७०थी ७२.