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२७ गूर्जर भाषामां हीरानंदसूरि, लक्ष्मीसागरसूरि, पार्श्वचंद्र अने समयसुंदर वगेरेए 'वस्तुपाल रासा'ओ रच्या छे जे लगभग संस्कृत काव्य ग्रंथोने अनुरूप छे. वर्तमान युगमां केटलाक विद्वानोए तेमना चरित्रने ऐतिहासिक दृष्टिए अवलोक्युं छे. स्व. चीमनलाल डाह्याभाई दलाले 'सुकृतसंकीर्तन', 'वंसतविलास', 'हम्मीरमदमर्दन' अने 'नरनारायणानंद'नी प्रस्तावनामां तत्संबंधी विद्वत्तापूर्ण संशोधनो कर्यां छे. आ सिवाय स्व. वल्लभजी आचार्ये 'कीर्तिकौमुदी'ना गुजराती भाषांतरनी प्रस्तावनामां, श्री. झवेरी जीवणचंद साकरचंदे 'जैनपत्र'ना अंकमां अने श्री नरहरिभाई परिखे 'मधपूडा'मां वस्तुपाळना जीवन संबंधी लेखो लख्या छे. 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' भा. ४ ना अंक पहेलामां श्री. शिवराम शर्माए “सोमेश्वरदेव और कीर्तिकौमुदी" नामक विवेचनपूर्ण निबंध लख्यो छे. आ बधानो समन्वय साधी श्री मोहनलाल दलीचंद देशाईए 'जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहास'मां वस्तुपालचरित्र अने तेना साहित्यनी सुंदर समालोचना करी छे. आ बधा ग्रन्थोनी हकीकत लगभग एक बीजाने मळती आवे छे. केटलाकमां तेनां सुकृत कार्यो अने वर्णनोनी वधघट जोवामां आवे छे. उपर्युक्त ग्रंथो पैकी घणाखरा बल्के 'धर्माभ्युदयकाव्य' सिवायना बधा ग्रन्थो प्रकाशित थया छे. हवे आ ऐतिहासिक अने धार्मिक दृष्टिबिंदु रजू करतो 'धर्माभ्युदय' ग्रंथ परमपूज्य मुनिवर श्री प्रवर्तक कांतिविजयजीना सुशिष्यप्रशिष्य मुनि श्रीचतुरविजयजी अने मुनि श्रीपुण्यविजयजी जेवा विद्वान् साधु पुरुषो द्वारा संपादित थई 'सिंघी जैन ग्रन्थमालाना एक मूल्यवान मणि तरीके प्रकाशमां मुकाय छे जे अभिनंदनार्ह छे. एमांथी वस्तुपाळना जीवन उपरांत केटलीक अन्य हकीकतो पण जाणवा जेवी मळी शके छे. वस्तुपाळनां अनेक सत्कार्योमां शत्रुजय अने रैवतकनी संघयात्रा ए महत्त्वधर्मकार्य हतुं. आ यात्रानी केटलीक विशिष्ट हकीकतो 'धर्माभ्युदय' पूरी पाडे छे. २. धर्माभ्युदय याने संघपतिचरित्र महाकाव्य ।
आ महाकाव्य तेना अभिधान अनुसार संघाधिपतिओनां कर्तव्यने लगतां चरित्रो रजू करे छे जेथी समाजना मानस उपर धर्माभ्युदयनी छाप पडे छे. तेनी बीजी विशिष्टता तेमांथी वस्तुपालचरित्रनी सहेज झांखी थवा उपरांत संघपति वस्तुपाळे संघसहित करेल शत्रुजयतीर्थनी महायात्रानुं व्यवस्थित वर्णन छे. आ आखोय ग्रन्थ शुद्ध संस्कृत भाषामां रचायो छे. तेना कुल पंदर सर्ग अने ५२०० श्लोक छे.१ ___तेनी रचना महाकाव्यनी पद्धतिए करवामां आवी छे. तेनो पहेलो अने पंदरमो सर्ग इतिहासलक्षी छे. तेमां वस्तुपाळवंशवर्णन, वस्तुपाळना कुलगुरुओनो परिचय, वस्तुपाळे करेल संघयात्रानुं वर्णन अने वस्तुपाळना गुरु विजयसेन सूरिना नागेन्द्रगच्छमां थयेल पूर्वाचार्योनी १. प्रत्येकमत्र ग्रन्थाग्रं विगणय्य विनिश्चितम् । द्वात्रिंशदक्षरश्लोकद्विपञ्चाशच्छतीमितम् ।।