________________
आ शासन जिनेश्वर भगवन्त रचित होवाथी स्वतः सिद्ध छे, बोजा हेतु निरपेक्ष प्रामाणिक छे, १, यथार्थवस्तुने प्रतिपादन करनार छ २, जैनशासनने शरणे आवेलाने अनुपम सुख आपनार छ ३, अने एकांतवाद रूप मिथ्यामतोने दूर करनार छ. ४, उद्देश.
ग्रंथकार ग्रंथनो उद्देश जणावतां कहे छे के आ ग्रंथ हुँ एटला माटे बनायूँ छु के आगमोनो अभ्यास करवामां रस विनाना माणसो पण आ ग्रंथने एकाग्रचित्तथी मनन कर्या पछी आपो आप श्रुतधरोनी उपासना करवा ललचाय, अर्थात् आ ग्रंथ वांच्या पछी तेमने शास्त्रोतुं चिंतन करवानी आपोआप इच्छा थशे. अभिधेय.
तीर्थकर भगवानोना वचनोना अर्थतत्त्वने प्रतिपादक द्रव्यार्थिक नय अने पर्यायाथिक नय अभिधेय छे. द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक आबे-नयना मुख्य भेदो छे, पीजा नयो एतो द्रव्यार्थिक अने पर्यायाथिक नयना भेदो छे. आ ग्रन्थमां ते मुख्य वे नयनी अपेक्षाए स्याद्वादतच्चनु निरूपण करवामां आवशे.
अर्थात् ग्रंथनो मुख्य प्रतिपाद्य विषय अनेकान्तवाद छे, आ अनेकान्त-नयोना स्पष्टीकरणथी ज स्पष्ट थइ शके तेम छ, आ नयो अनेक होवा छतां ते बधानो समावेश द्रव्यार्थिक अने पर्यायायिक आ बेमां थाय छे. आथी आ ग्रंथनो मुख्य विषय द्रव्याथिक नय अने पर्यायार्थिक नय छे. अने तेने अनुसरी ज्ञान अने ज्ञेयनी विचारणा छे.
प्रथमकोट कोई पण वस्तुने तेनी बधी बाजुथी तपासवू ते अनेकान्त छे. एटले एकज वस्तुमा रहेल बधाये परम्पर विरोधि धर्मोनो अपेक्षाभेदथी विचार करी ते धर्मोनो एक वस्तुमा समावेशरूप कथञ्चित् तत्त्वनु निरूपण ते अनेकान्त छे. अने कोई पण वस्तुने तेनी बीजी बाजुनो अपलाप कर्या विना विचारणा करची, एटले स्वविरोधिधर्मनी उपेक्षा करी एक धर्मनी विचारणा ते नय छे. अनेकांतमां बधा नयो संकलित थाय छे, आ नयो अनंत छे. केमके वातुमांअनंत धर्मों छे. ___ आ अनंत धर्मोमाना बीजा धर्मने अपलाप कर्या विना एकुकाधर्मने प्रतिपादन करनार वचनमार्ग अनन्त होवाथी नयो अनन्त छे सिद्धान्तमां कडं छे के 'जावइया वयणपहा तावइया चेव होंति णयवाया' जेटला वचनमार्गों तेटला नयवादो छे. आ बधा नयोनो समुच्चय रीते विचार करीए तो ते यधा बे भागमां व्हेंचाइ जाय छे. एक अभेददृष्टिमां अने बीजी भेदरष्टिमां, अभेददृष्टिने द्रव्यार्थिक नय अने भेददृष्टिने पर्यायार्थिक नय कहे छे.
"Aho Shrutgyanam"