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अल्ली फुल्ल म तोडहु मन आरामा म मोडहु कुसुमेहिं अचि निरंजणु हिंडह काई वणेण वणु ॥ २ ॥
क. सिद्धसेने पद्यने समजवा खुब प्रयत्न क्यों पण ए अपभ्रंश पद्यनो अर्थ तेमने न समजायो त्यारे आडो उत्तर आपीक के 'तमे बीजुं कांइ पुछो' पण वृद्धवादिए कहां के 'एनेज फरी विचारो अने जवाब आपो ' सिद्धसेने अनादरथी ए पद्यनो असंबद्ध जेवो तेवो खुलासो कर्यो पण ते खुलासो गुरु कबुल न राख्यो त्यारे सिद्धसेने कधुं तमेज तेनो अर्थ करी बतावो वृद्धवादिए क आ पद्य एम कहे छे के
जीवनरुप नानकडi कोमळ फुलवाळा मानवदेहना जीवनांशरुपी फुलोने तमे राजसत्कार अने अभिमानथी न तोडो, मनना यम नियम आदि बगीचाओने भोगविलासद्वारा न भांगो. मनना सद्गुणोरूप पुष्पो वडे निरंजन जिनेश्वरदेवनी पूजा करो. एक वनथी बीजे वन शा माटे भटको छो.
( बीजो अर्थ )
अथवा अणु एटले अल्प धान्य, ते अल्प विषयपणाथी मानवदेहनां पुष्पो समजवां. ते अल्प पुष्पी नरदेहना शीलांग महाव्रत रुप पुष्पोनो विनाश कर नहि. मनरुप आरामने मरडी नाख, एटले चित्तना विकल्पजाळनो संहार कर तथा मुक्तिपदने प्राप्त थयेला निरंजन वीतराग देवनी पुष्पोथी अर्चा न कर, अर्थात् गृहस्थने उचित छकाय जीवनी विराधना रूप देवपूजामां प्रयत्न न कर. कारण के ते सावद्य छे. कीर्त्तिनी कामनाथी संसार रूप अरण्यमां शा माटे भ्रमण करे छे, अर्थात् मिथ्यावादने तजी जिनेश्वरे कहेल सत्यमा आदर कर. ए बीजो अर्थ बताव्यो.
( त्रीजो अर्थ )
अथवा तो कीर्त्तिना स्याद्वाद वचन रूप पुष्पोने तोड नहि. तथा मनना अध्यात्मोपदेश रुप आरामने तोडी न नाख, अर्थात् खोटी व्याख्याथी तेनो विनाशे न कर. वळी रागादि लेपरहित निरंजन मननी, सुगंधि अने शीतळ सदुपदेश रुप पुष्पोथी पूजा कर. अर्थात् मनने श्लाघ्य बनाव, तथा संसार रूप अरण्यना स्वामी परम सुखी होवाथी ते तीर्थकर छे, तेमना शब्द - सिद्धांत सूत्रमां भ्रांति शा माटे लावे छे ? कारण के तेज सत्य छे. माटे तेमांज प्रेमभावना राखी जोइए. ए त्रीजो अर्थ बताव्यो.
आ सांभळी सिद्धसेननुं मगज विचारे चडयुं. खरेखर आ पंक्तिओ मारे माटेज घटे छे. वृद्ध सामे धारीने जोयुं तो तेने ते वृद्ध बीजा कोइ नहि पण पोताना गुरु वृद्धवादीज लाग्या. ते गुरूने नमी पडया अनेक के 'में आपनी अवज्ञा करी तेनी क्षमा आपो. गुरुए कहीं दुनीयाना
"Aho Shrutgyanam"