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तथा या ग्रन्थमां हाथनी अधिष्ठायिका पंचांगुलि देवी मुख्य बताववामां आवेल छे.
मन्त्रोना अक्षरनो तत्व सार. जेवी रीते ॐकारमां होय छे तेवी रोते सामुद्रिक तत्त्वसार हाथमां होय छे.
आ त्रलोकमा वधारे बीजुकोइ हाथनु साधन नथी तेथीज सरस्वतीए पोते पोताना हाथमां पुस्तक राखेल छे तेथीज हाथ श्रेष्ठ छे. हाथमां तीर्थोनी स्थापना.
अंगूठाना मूलमां ब्राह्मयतीर्थ - कनिष्ठामा काय तीर्थ, तर्जनी तथा अंगूठानी मध्यमां पितृतीर्थ, अने आंगलिओना मुखमां दैवत तीर्थ - तर्जनीमां शत्रुंजय, तीर्थ, मध्यमामां उज्जयनी तीर्थ अनामिकामां आबुतीर्थ, कनिष्ठामां सम्मेतशीखर; अंगूठामां अष्ठापदगिरि तीर्थ आप्रमाणे पांच तीर्थो आंगलिओमां समजवा.
सवारना हाथ जोवाथी उत्तम पुरुषोथी पूजाय छे मान मले छे.
विंशेोपकानुं स्वरूप.
पांचे आंगलिओनां वेदामां वीस रेखा होय तो तेने विंशोपका कहेवायछे वे विंशोपकामां-विस तिर्थंकरोनी स्थापना करेल छे, अने हाथना तलियामां पश्चिम दक्षिण, पूर्व उत्तरमां चार दिशानी स्थापना करवी, तो आप्रमाणे २४ तीर्थंकरोनी स्थापना समजवी.
पितानी रेखानु नाम गंगा, मातानी रेखानु नाम सरस्वती, आयुरेखानु नाम यमुना, आत्रणे रेखानो संगम अक्षयतीर्थ ऋषभदेवनु केवलज्ञान होवाथी तेनु नाम अक्षय तीर्थ कहेल छे. माटे तेनी स्थापना हाथमा आप्रमाणे कहेल छे.
अंगूठा विगेरे पांचे आंगलियोमां पंचपरमेष्टितुं ध्यान करवु. तथा चार दिशाम चार दिगुपालनी स्थापना करवी.
सवारना उठती वखते पोताना बन्ने हाथनी रेखा भेगी थाय तेवी रीते हाथ जोडीने पचखाण करती वरखते सिद्ध भगवाननु ध्यान करवु.
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"Aho Shrutgyanam"