________________
तृतीयम् । ]
भाषाटीकासमेतः t
हृष्टो रोमाञ्चिते जातहर्षे प्रहसिते स्मृते ।
तृतीयम् ।
अवटः कुहके कूपे खिले गर्तेऽप्यथाऽवदुः ॥ ३२ ॥ गर्ने कृपे च घाटायामटोंतर्गले गले | अरिष्टः फेनिले निम्बे लशुने काककङ्कयोः ॥ ३३ ॥ अरिष्टं सूतिकागारे तक्रे चिह्ने शुभेऽशुभे । उत्कटस्तीत्रे मत्ते च करटो निन्द्यजीविते ॥ ३४ ॥ एकादशाह श्राद्धे च काकवाद्यान्तरेऽपि च ! कुब्राह्मणे कुसुम्भेऽपि दुर्दान्तगजगण्डयोः || ३५ ॥ कर्कटः करणे स्त्रीणां राशिभेदकुलीरयोः । खगे तु कर्कटी तु स्याद्वालुकयां शाल्मलीफले ॥ ३६ ॥
हृष्ट-रोमांचवाला, आनंदवाला, हंसा | अरिष्ट - प्रसूतिका ( जच्चाका ) स्थान, हुवा, स्मरण कियाहुवा | छाछ चिह्न - शुभ अशुभ, ( न० ) तृतीय | उत्कट - तीव्र, मदोन्मत्त, ( पुं० ) करट-निंद्य आजीविका करनेवाला ॥ ३४ ॥ मरनेसे ग्यारहवें दिनका श्राद्ध, काग-पक्षी, बाजाका भेद,. निंदितत्राह्मण, कसूंभा, कठिनता से दमन कियाहुवा, हस्ती का गंडस्थल, ( पुं० ) ॥ ३५ ॥
कर्कट - स्त्रियोंका करण ( हावभेद ), राशिभेद, कुलीर-जन्तु, पक्षी, (पुं० ) सेमलका फल,
अवट - कपटी, कूवा, अधूरा, खड्डा, ( पुं० )
अवटु - खड्डा, कुवा, ग्रीवा और शिरकी संधिका पिछला भाग, (पुं०) अर्गट-
- गलका अंतर्भाग, गल, (पुं०)
॥ ३२ ॥
अरिष्ट - रीठा, नीव-वृक्ष, ल्हस्सन, काग-पक्षी, श्वेत चील-पक्षी, (पुं०) कर्कटी - ककड़ी,
॥ ३३ ॥
(स्त्री० ) ॥ ३६ ॥
७९
" Aho Shrutgyanam"