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खचतुर्थम् ।] भाषाटीकासमेतः। त्रिशिखो रक्षसो भेदे क्लीबं भूषात्रिशूलयोः । दुर्मुखो मुखरे नागराजे शाखामृगाश्वयोः ॥ ९ ॥ प्रमुखः प्रथमे श्रेष्ठे मयूखो ज्वालरुक्करे ।। स्कन्दे तर्के विशाखः स्याद्विशाखा भे कठिल्लके ।। १० ॥ विशिखस्तोमरे बाणे विशिखा खनिरथ्ययोः । नलिकायां च विशिखा वैशाखो राधमन्ययोः ॥ ११ ॥ सुमुखस्तार्क्ष्यतनये पण्डिते भुजगान्तरे ॥ १२ ॥
खचतुर्थम् । भवेदग्निमुखो देवे द्विजे पावकसम्भवे । भल्लातके त्वग्निमुखी कचिदग्निमुखोऽपि च ॥ १३ ॥ लाङ्गलिक्यां त्वग्निशिखा कुङ्कुमेऽग्निशिखं स्मृतम् । इन्दुलेखा शशिकलाऽमृतासोमलतास्वपि ॥ १४ ॥
त्रिशिख-एकराक्षस, (पुं०) आभू- | वैशाख-वैशाख मास, दधि मथनेका, षण, त्रिशूल ( ०न),
दंडा (रई) (पुं०)॥ ११॥ दुर्मुख-बहुत बोलनेवाला (त्रि०) | सुमुख-गरुडका पुत्र, पंडित, सर्पभेद नागराज ( नागभेद) या अनंत, (पुं०)॥ १२॥ वन्दर, घोडा, (पुं० )॥ ९॥
__ खचतुर्थ । प्रमुख-पहला, श्रेष्ठ, (पुं०) अग्निमुख-देवता, ब्राह्मण, कञभा, मयूख-ज्वाला, शोभा, किरण, (पुं०) (पुं० ) विशाख-स्वामिकार्तिक, तर्क, (पुं०) | अग्निमुखी(ख)-भिलावा, (स्त्री० विशाखा विशाखा नामक नक्षत्र, न.) ॥ १३ ॥
करेला-शाक, (स्त्री०) ॥१०॥ अग्निशिखा-कलिहारी, ( स्त्री. ) विशिखा-तोमर (गुर्ज), बाण,(पुं०) केसर, (न०)
खान-चांदी आदिकी, गली, नाली, | इन्दुलेखा-चन्द्रकला, गिलोय, सोम(स्त्री०)
| लता, (स्त्री० ) ॥ १४ ॥
"Aho Shrutgyanam"